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________________ और तुम तय नहीं कर पाते। तय तुम करना चाहते हो और नहीं कर पाते तो अनिर्णय। अनिर्णय बड़ी दुविधा की दशा है। अचुनाव-तुम तय करना ही नहीं चाहते, तुमने तय करना ही छोड दिया। तुम कहते हो, हम तो देखेंगे। हम यह भी देखेंगे, हम वह भी देखेंगे; हमारा कोई झुकाव नहीं है। हम सिर्फ साक्षी बन कर बैठे हैं। ___ अचुनाव तो चैतन्य की सबसे ऊंची स्थिति है। अनिर्णय, चैतन्य की सबसे नीची स्थिति है। अनिर्णय को अचुनाव मत समझ लेना, नहीं तो तुम भ्रांति को सत्य समझ लोगे। तुम यह मत समझ लेना. चूंइक हम निर्णय नहीं कर पाते, इसलिए हम अचुनाव की अवस्था को उपलब्ध हो गए हैं। निर्णय न कर पाना एक बात है और निर्णय करना छोड़ देना बिलकुल दूसरी बात है। निर्णय न कर पाना तो एक तरह की असहाय अवस्था है; निर्णय करना छोड़ देना एक मुक्ति है। इति ज्ञान! जनक कहते हैं, यही ज्ञान है! तीसरा प्रश्न : जनक अष्टावक्र के समक्ष निस्संकोच भाव से ज्ञान को अभिव्यक्त किए जा रहे हैं। क्या ज्ञान उपलब्धि के बाद गुरु के समक्ष सकुचाहट भी खो जाती है? कृपा करके समझाइए। सकुचाहट या संकोच भी अहंकार का ही अनुषंग है। जिसको तुम संकोच कहते हो, लज्जा कहते हो, वह भी अहंकार की ही छाया है। तुम सकुचाते क्यों हो कहने में? तुम सोचते हो, कहीं ऐसा न समझा जाए कि कोई समझे कि अभद्र है, मर्यादा-रहित है। तुम सकुचाते क्यों हो कहने में? कहीं ऐसा न हो कि भद्द हो जाए, जो मैं कहूं वह ठीक न हो। तुम सकुचाते क्योंहो कहने में? क्योंकि तुम डरे हुए हो दूसरा क्या सोचेगा! लेकिन गुरु और शिष्य का संबंध तो बड़ा अंतरंग संबंध है। वहां दूसरा क्या सोचेगा, यह विचार भी आ जाए तो भेद आ गया। गुरु के सामने कैसा संकोच? जो हुआ है, उसे खोल कर रख देना। बुरा हुआ तो बुरा खोल कर रख देना भला हुआ तो भला खोल कर रख देना। दुख स्वप्न देखा तो उसे खोल कर रख देना। अंधेरा है तो कह देना अंधेरा है, रोशनी हो गई, तब संकोच क्या? क्या तुम सोचते हो कि जनक को कहना चाहिए कि नहीं-नहीं, कुछ भी नहीं हुआ अरे साहब, मुझे कैसे हो सकता है! हो गया, और वे कहें संकोचवश, शिष्टाचारवश, कि नहीं-नहीं! तुमने जनक को क्या कोई लखनवी समझा है? मैंने सुना है कि एक स्त्री के पेट में दो बच्चे थे। नौ महीने निकल गए, दस महीने निकलने लगे, ग्यारह महीना, बारह महीना। स्त्री भी घबड़ा गई, डाक्टर भी घबड़ा गए। कई साल निकल गए,
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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