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________________ एक स्त्री है जिसको तुम चाहते हो कि शादी कर लें, लेकिन उसके पास सुंदर शरीर नहीं है और धन बहुत है। और एक स्त्री है, जिसके पास सुंदर शरीर है और धन बिलकुल नहीं है। अब तुम्हारे मन में डावांडोल चल रहा है. किसको चुन लें? धन वाली कुरूप स्त्री को चुन लें कि निर्धन सुंदर स्त्री को चुन लें? एक मन कहता है, ' धन का क्या करोगे? धन को खाओगे कि पीयोगे ? अरे, सौंदर्य के आगे धन क्या है?' एक मन कहता है, 'सौंदर्य का क्या करोगे? दो दिन में सब फीका हो जाएगा, दो दिन में परिचित हो जाओगे। फिर क्या करोगे, खाओगे कि पीयोगे ? धन आखिर में काम आता । धन सुंदर है; कल चेचक निकल आए, फिर क्या करोगे? दूर के ढोल सुहावने होते हैं- पास आ कर कौन-सा कल की हो जाएगी - फिर क्या करोगे? और अभी तो जिंदगी भर काम आएगा । और आज यह स्त्री और आज यह सुंदर दिखाई पड़ रही है दूर से जहर निकलेगा, क्या पता ! फिर आज जवान है, अकेले निर्धन हो, और एक गले से बांध ली फांसी दो हो जाओगे, भूखों मरोगे!' आदमी की भूख पेट में हो तो कहां का प्रेम और कहां का सौंदर्य-भूखे भजन न होय! तो एक मन कहता है, सुंदर को चुन लो एक मन कहता है, धन को चुन लो। और दुविधा है कि तुम दोनों चाहते। तुम चाहते यह थे, दोनों हाथ लह होते। तुम चाहते सुंदर स्त्री होती और धन भी होता । वैसे दोनों हाथ लह इस संसार में किसी को नहीं मिलते। अगर किसी को भी मिल जाते इस संसार में दोनों हाथ लह, तो उसके लिए धर्म व्यर्थ हो जाता; लेकिन धर्म किसी को कभी व्यर्थ नहीं हुआ, क्योंकि दोनों हाथ लह कभी किसी को नहीं मिलते। कुछ न कुछ कमी रह जाती है। किसी की आंख सुंदर है, किसी के कान सुंदर हैं, किसी की नाक सुंदर है... बड़ी मुश्किल है. किसी के बाल सुंदर हैं, किसी की वाणी मधुर है, किसी का व्यवहार सुंदर है, किसी का देह का अनुपात सुंदर है। हजार चीजें हैं, सभी पूरी नहीं होतीं। मन की आकांक्षा बड़ी है और चीजें बड़ी छोटी हैं। मन के सपने बड़े सुंदर हैं और सब चीजें फीकी पड़ जाती हैं। दोनों हाथ लह किसी को भी नहीं मिलते। वे तो परमात्मा हुए बिना नहीं मिलते। तुमने देखा न, हिंदुओं की परमात्मा की मूर्तियां हैं -कहीं सहस्रबाहु .. और सब हाथों में, किसी में शंख, किसी में लह, किसी में कुछ। आदमी के दो हाथ हैं, संसार बड़ा है- जब तक तुम सहस्रबाहु न हो जाओ, तब तक कुछ होने वाला नहीं। परमात्मा हुए बिना कोई तृप्त नहीं होता; हाथ भर ही नहीं पाते। और दो हाथ भर भी जाएं तो भी क्या होने वाला है? आकांक्षाएं बहुत हैं, उनके लिए हजारों हाथ चाहिए; वे भी शायद छोटे पड़ जाते होंगे। कभी तुम देखना हिंदुओं की पुरानी मूर्तियां तो कई नई चीजें पैदा हो गई हैं, जो उन हाथों नहीं हैं। अब भगवान को नए हाथ उगाने पड़े, नहीं तो वे भी तडूप रहे होंगे। अगर अब हम फिर से बनाएं तो एक हाथ में कार लटकी है, एक हाथ में कुर्सी लटकी है, एक हाथ में फ्रिज रखा है। तुम हंसते हो! क्योंकि तुमने उन दिनों जो चीजें श्रेष्ठतम थीं वे लटका दी थीं। अब तो चीजें बहुत बढ़ गई हैं, उतने हाथों से काम न चलेगा। चीजें तो रोज बढ़ती जाती हैं, हाथ सदा छोटे पड़ जाते हैं। तो अनिर्णय की अवस्था तो तब है, जब तुम्हारे मन में बहुत-सी चीजें हैं, प्रतियोगी चीजें हैं
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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