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________________ प्रश्न उठता, तो वह पैसकल से पूछा करता था कि तुम इतने बड़े गणितज्ञ हो, जरा मेरे जुए में साथ दो। तो पैसकल का मित्र था, इसलिए पैसकल उसकी बात सुनता था। उसकी बात सुनते-सुनते पैसकल को यह समझ में आया.. उसने अपनी आत्मकथा में लिखा है, कि उसकी बातें सुन-सुन कर मैं ईसाई हो गया। यह बड़े आश्चर्य की बात है, जुआरी की बातें सुन सुन कर ईसाई! तो पैस्कल कहता है, इस तरह मैं ईसाई हुआ। उसके जुआरी के मनोविज्ञान को समझ कर मुझे समझ में आया कि धार्मिक आदमी का मनोविज्ञान भी जुआरी का है। जुआरी एक रुपया लगाता अगर जीतेगा तो पच्चीस रुपए मिलने वाले हैं; अगर हारेगा सिर्फ एक ही रुपया जायेगा। यह उसका मनोविज्ञान है। हारने में कुछ खासखोता नहीं, अगर मिल गया तो पचीस गुना मिलता है या हजार गुना मिलता है। अगर खोया तो कुछ खास खोता नहीं। मिलता है तो बहुत मिलता है। इन दोनों के बीच जुआरी तौलता है। तो पैसकल ने लिखा है कि मैंने भी सोचा कि यदि ईश्वर है.। आस्तिक मानता है कि ईश्वर है, अगर मरने के बाद आस्तिक ने पाया कि ईश्वर नहीं है, तो क्या खोया? थोड़ा-सा समय खोयाप्रार्थना-पूजा में लगाया, जो सत्संग में गंवाया, बाइबिल, कुरान उलटने में जो नष्ट हु थोड़ा-सा समय खोया। अगर ईश्वर नहीं पाया तो आस्तिक इतना ही खोएगा कि थोड़ा सा समय खोया और जब पूरी ही जिंदगी खो गई तो उस थोड़े समय से भी क्या फर्क पड़ता है? लेकिन अगर ईश्वर हुआ, तो शाश्वत रूप से स्वर्ग में निवास करेगा, भोगेगा आनंद! नास्तिक कहता है, ईश्वर नहीं है। अगर ईश्वर न हुआ तो ठीक, नास्तिक ने कुछ भी नहीं खोया। लेकिन अगर ईश्वर हुआ, तो अनंत काल तक नर्कों के दुख..। इसलिए पैसकल ने लिखा कि मैं कहता हूं यह सीधा गणित है कि ईश्वर को मानो। इसमें खोने को तो कुछ भी नहीं है, मिलने की संभावना है। न मानने में कुछ मिलेगा नहीं अगर ईश्वर न हुआ लेकिन अगर हुआ तो बहुत कुछ खोजाएगा। पैसकल कहता है, अगर तुम्हें थोड़ी भी सुरक्षा और जुए का थोड़ा भी अनुभव है तो ईश्वर सौदा करने जैसा है। अब यह एक सरणी है। इस सरणी में ईश्वर के प्रति कोई प्रेम नहीं है। यह सीधा तर्क है। और अगर पैसकल मुझे कहीं मिल जाए, तो उससे मैं कहूंगा जो आदमी इस तरह सोच कर ईश्वर में भरोसा करता है, वह भरोसा करता ही नहीं। वह जुए में भरोसा करता है, गणित में भरोसा करता है, ईश्वर में भरोसा नहीं करता। यह कोई भरोसा हुआ? यह कोई प्रेम की और श्रद्धा की भाषा हुई? यह तो सीधी बाजार की बात हो गई, यह तो दूकान की बात हो गई। या तो ईश्वर है या ईश्वर नहीं है-'यदि का कोई सवाल नहीं। या तो तुम्हारे अनुभव में आ रहा है कि ईश्वर है, या तुम्हारे अनुभव में आ रहा है कि नहीं है। अगर तुम्हारे अनुभव में आ रहा है कि है, तो फिर चाहे लाभ हो कि हानि-ईश्वर है। अगर तुम्हारे अनुभव में आ रहा है कि नहीं है, तो फिर चाहे हानि हो कि लाभ नहीं है। 'यदि का कहां सवाल है?
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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