SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जड़ से ही काटना शुरू कर दिया। तुम उसकी संभावना ही नष्ट किए दे रहे हो। जहां 'करना चाहिए ' आ गया, वहां से प्रेम विदा हो चुका। क्या करोगे तुम प्रेम में? तुम अभिनय करोगे? छोटा बच्चा क्या करेगा? मां आएगी पास तो मुस्कुराएगा, जबर्दस्ती मुंह फैला देगा। भीतर हृदय से कोई मुस्कुराहट उठेगी नहीं। अब मां आ रही है - मां है तो मुस्कुराना चाहिए, प्रेम दिखाना चाहिए; लेकिन इसके हृदय में कहीं कोई मुस्कुराहट नहीं उठ रही, यह झूठ होना शुरू हुआ। यह पाखंड की यात्रा शुरू हुई। यह प्रेम की यात्रा नहीं है; यह बच्चा मरने लगा, यह पाखंडी होने लगा। फिर जिंदगी भर यह मुंह को फैला देगा। मुंह को फैला लेना तो अभ्यास से आ जाता है। मुंह का फैला देना थोड़े ही मुस्कुराहट है मुस्कुराहट तो वह है जो आए भीतर से फैल जाए चेहरे पर, रोएं - रोएं पर, उठे हृदय से --तो ही मुस्कुराहट है। ऐसे ओंठ को तान लिया, तो अभिनय हुआ, नाटक - हुआ, राजनीति हुई देखते हो राजनीतिज्ञ को, बस हाथ जोड़े मुस्कुराता ही रहता है! एक राजनीतिज्ञ को मैं जानता हूं । कहते हैं वे रात में भी जब सोते हैं, तो हाथ जोड़े मुस्कुराते रहते हैं। नींद में भी वोटरों के समक्ष खड़े हैं; मुस्कुरा रहे हैं। जीवन सड़ा जा रहा है। प्राण में सिवाय अंधेरे के कुछ भी नहीं है; सिवाय चिंता और विक्षिप्तता के कुछ जाना नहीं, मगर मुस्कुराए जा रहे हैं! वह मुस्कुराहट थोथी है। और तुमने अगर प्रेम इसलिए किया, क्योंकि मां है, क्योंकि छोटी बहन है, क्योंकि छोटा भाई है - अगर तुम्हारे प्रेम में 'क्योंकि' रहा, तो तुम समझ लेना कि तुम समझ नहीं पाए । हम सबको तैयार किया गया है पाखंड के लिए। इसलिए तो दुनिया में प्रेम कम है और पाखंड बहुत है। इसलिए तो दुनिया में सत्य कम है और अभिनय बहुत है। इसलिए तो दुनिया में परमात्मा प्रगट नहीं हो पाता; क्योंकि माया बहुत है, मायाचारी बहुत हैं। तुम वही जीना, जो तुम्हारे भीतर से उठता हो । शुरू-शुरू में अड़चन होगी, क्योंकि बहुत बार तुम पाओगे. जब हंसना था, तब तुम नहीं हंस पाए जब रोना था, तब नहीं रो पाए। शुरू-शुरू में अड़चन होगी। उस अड़चन को ही मैं तपश्चर्या कहता हूं। लेकिन धीरे- धीरे तुम एक अपूर्व आनंद से भरने लगोगे । और तब तुम पाओगे कि जब तुम हंसते हो तो तभी हंसते हो, जब वस्तुतः हंसी खिल रही होती है। तुम धोखा नहीं देते. धीरे- धीरे तुम्हारा जीवन तंत्र से मुक्त होने लगेगा और स्वभाव के अनुकूल आने लगेगा। तंत्र है आदत। बचपन से किसी को सिखा दिया कि हिंदू मंदिर के सामने हाथ जोड़ना, तो वह जोड़ लेता है; वह आदत है। न तो कोई हृदय में श्रद्धा है, न प्राणों में कोई नैवेद्य चढ़ाने की आतुरता है, न भरोसा है। गणित जरूर है, भरोसा नहीं है। मैं ब्लैस पैसकल का जीवन पढ़ता था । बहुत बड़ा गणितज्ञ और वैज्ञानिक हुआ पैसकल । उसका एक मित्र था. दि मेयर। वह जुआरी था। कहते हैं, दुनिया के खास बड़े जुआरिओं में एक था। उसने अपना सब जीवन जुए पर लगा दिया था । जुए में जब कभी कोई बड़ी कठिनाई आ जाती, उसे कोई
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy