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________________ भविष्य का कुछ पता नहीं है। एक क्षण बाद क्या होगा, कुछ नहीं कहा जा सकता। क्योंकि जीवन यंत्रवत नहीं है; जीवन परम स्वतंत्रता है। होते-होते बात रुक सकती है; घटते -घटते रुक सकती है। आदमी आखिरी क्षण से पहुंच कर लौट सकता है। एक आदमी छलांग लगाने जा रहा था। मुझे बचपन में बहुत शौक था नदी पर ऊंचाई से कूदने का। जितनी ऊंचाई हो, उतना मुझे रस था। अब मेरे साथ जो मेरे मित्र थे, वे बड़े परेशान रहते थे। क्योंकि अगर मैं कूद जाऊं और वे न कूदे तो उनके अहंकार को चोट लगे। मगर कूदे तो उनके प्राण संकट में! तो कभी-कभी मैं देखता कि कोई हिम्मत करके दौड़ता है, मेरे साथ दौड़ रहा है कूदने के लिए-चालीस फीट या तीस फीट की ऊंचाई या पचास फीट की ऊंचाई। फिर धीरे- धीरे तो मुझे रस इतना आने लगा कि वह जो नदी के ऊपर रेलवे का पुल था, उससे जा कर मैं कूदने लगा। वह तो बहुत ही खतरनाक था। उस पर कोई मेरे साथ दौड़ कर आता आता, आता आता बिलकुल आखिर में; मैं तो कूद जाता, वे खड़े ही रह गये! अब बिलकुल आखिर पर आ गया था। कोई शक - शुबा न थी। मेरे साथ दौड़ा, किनारे पर आ गया था...। एक बार तो ऐसा हुआ कि पंचमढ़ी में मेरे गांव से थोड़े फासले पर पहाड़ी स्थान है - वहा के एक जलप्रपात में हम कूदने गये। तो मेरे एक मित्र थे, जो मेरे साथ बहुत जगह कूदे थे काफी ऊंचाई थी, घबड़ा गये। कूद भी गये, लेकिन बीच में एक जड़ को पकड़ कर लटक गये। क्या करोगे? कूद भी गये! ऐसा भी नहीं कि न कूदे हों-कूद भी गये, लेकिन बीच में एक जड़ को पकड़ लिया। मैं जब पानी में नीचे पहुंच गया डुबकी खा कर ऊपर आया तो मैंने कहा कि अब यह बड़ा मुश्किल हो गया। उनको उतारना बड़ा मुश्किल हो गया। जो हो गया है, वह तो अष्टावक्र देख सकते हैं; लेकिन जो अभी होने को है, उसका कोई उपाय नहीं है। भविष्य बिलकुल निराकार है ! हो भी सकता है, न भी हो! तो इसको तुम परीक्षा ही समझना, यह परीक्षा से भी ज्यादा । परीक्षा तो है ही परीक्षा से भी ज्यादा, भविष्य की तरफ इंगित है। परीक्षा से भी ज्यादा, भविष्य को एक दिशा में लाने का उपाय है; भविष्य को एक रूप देने का उपाय है; भविष्य को जन्म देने का उपाय है। और जनक ने जो उत्तर दिये हैं, वे निश्चित ही, साफ कहते हैं कि छलांग हो गयी और होती रहेगी। जनक के उत्तर ने साफ कर दिया कि परीक्षा में तो वे पूरे उतरे, भविष्य की तरफ भी साफ हो गयी है, नये द्वार खुल गये हैं। गुरु जो भी करता है, ठीक ही करता है। तुम्हारे मन में ऐसे प्रश्न उठे कि क्या गुरु में इतनी सामर्थ्य नहीं कि वह जान ले। ऐसा प्रश्न अगर जनक के मन में भी उठता तो जनक चूक जाते। वे यह खुद भी कह सकते थे कि गुरुदेव, आप तो सर्वज्ञाता हैं; आप, और मेरी परीक्षा लेते हैं! अरे आप तो आंख खोल कर देख लो मुझमें ! तो आप खुद ही पता चल जायेगा। नहीं, जनक ने वह भी न कहा। क्योंकि अगर गुरु परीक्षा लेते हैं तो परीक्षा में भी कोई राज होगा। कोई राज होगा, जिसका जनक को अभी पता ही नहीं । जनक ने चुपचाप परीक्षा स्वीकार कर
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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