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________________ बिखर जाता, जैसे ताश के पत्ते हवा के एक झोंके में गिर जाते हैं। ज्ञान का जरा-सा झोंका, साक्षीभाव की जरा-सी हवा-और सब पत्ते बिखर जाते हैं। जनक ने सीधा-सीधा उत्तर नहीं दिया। सीधा-सीधा उत्तर चाहा भी न गया था। जनक ने तो उत्तर भी बड़ा निर्वैयक्तिक दिया और दर खडे हो कर दिया; जैसे कुछ परीक्षा उनकी नहीं हो रही है। क्योंकि जब तुम्हें खयाल हो जाये कि तुम्हारी परीक्षा हो रही है तो तनाव हो जाता है। तनाव हो जाता तो जनक परीक्षा में असफल हो जाते। बेचैन हो जाते बचाने को, सिद्ध करने को, तो गड़बड़ हो जाती। वे जरा भी बेचैन नहीं हैं, जरा भी चिंता नहीं है। वे दूर खड़े हो कर ऐसे देख लिये जैसे परीक्षा किसी और की हो रही है। जैसे जनक को कुछ लेना-देना नहीं है। अनेक मित्रों ने प्रश्न पूछे हैं कि गुरु परीक्षा क्यों लेता है? क्या गुरु को इतनी सामर्थ्य नहीं है कि वह देख ले कि वस्तुत: शिष्य को हुआ या नहीं? गुरु तो सब जानता है, फिर परीक्षा क्यों लेता परीक्षा सिर्फ परीक्षा ही नहीं है-परीक्षा आगे की प्रगति का उपाय भी है। ये जो प्रश्न पूछे अष्टावक्र ने, यह सिर्फ परीक्षा ही नहीं है। परीक्षा का तो मतलब होता है अब तक जो जाना उसको कसना है। अगर ये सिर्फ परीक्षा ही होती तो व्यर्थ थे। अब तक जो जाना वह तो अष्टावक्र को भी दिखायी पड़ रहा है। उसकी कोई परीक्षा नहीं है। लेकिन अब तक जो जाना उसके संबंध में प्रश्न उठा कर अब जो प्रतिक्रिया भविष्य में यह जनक करेगा, वह आगे की प्रगति बनेगी। तो परीक्षा दोहरी है-अतीत के संबंध में, मगर वह गौण है। उसका कोई बहुत मूल्य नहीं है। यह तो अष्टावक्र भी जान सकते हैं सीधा ही जान रहे हैं कि क्या हुआ है लेकिन जो हुआ है उसके संबंध में पूछ कर जनक जो प्रतिक्रिया करेगा, जो उत्तर देगा, उससे आगे के द्वार खुलेंगे। दोनों संभावनाएं हैं। अगर जनक गलत उत्तर दें तो पीछे के दवार बंद हो सकते हैं; जो खुलतेखुलते थे, वे फिर बंद हो सकते हैं। और अगर ठीक-ठीक उत्तर दे, तो जो द्वार खुले थे वे तो खुले ही रहेगे-और भी द्वार हैं, वे भी खुल जायेंगे। सब निर्भर करेगा जनक के उत्तर पर। गुरु के सामने जनक को अब तक जो घटा है, वह तो साफ है; लेकिन जो घटेगा, वह तो किसी के लिए भी साफ नहीं है। जो घटेगा, वह तो अभी घटा नहीं है। भविष्य तो अभी शून्य में है, निराकार में है, अभी उसने आकार नहीं लिया। अतीत का तो सब पता है। अतीत का तो सब पता अष्टावक्र को जनक से भी ज्यादा है। जनक जितना अपने संबंध में बता सकेगा, अष्टावक्र उससे ज्यादा देख सकते हैं। अष्टावक्र की दृष्टि निश्चित ही ज्यादा घिर और ज्यादा गहरी है। वे तो भीतर तक झांक कर देख लेंगे। उसका कोई सवाल भी नहीं है। अतीत से कुछ बड़ा सवाल नहीं है सवाल है भविष्य से।
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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