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________________ नक ने कहा : 'ज्ञान, ज्ञेय और ज्ञाता, ये तीनों यथार्थ नहीं हैं। जिसमें ये तीनों भासते हैं, मैं वही निरंजन हूं।' ज्ञानं ज्ञेयं तथा ज्ञाता त्रितयं नास्ति वास्तवम्। जो भी दिखाई पड़ रहा है, जिसे दिखाई पड़ रहा है, और इन दोनों के बीच जो संबंध है—ज्ञान का या दर्शन का जनक कहते हैं, आज मैं जागा, और मैंने देखा, यह सब स्वप्न है। जो जागा है और जिसने इन तीनों को देखा, स्वप्न की भांति तिरोहित होते, वही केवल सत्य है। तो तुम साक्षी को द्रष्टा मत समझ लेना। भाषाकोश में तो साक्षी का अर्थ द्रष्टा ही लिखा है; लेकिन साक्षी द्रष्टा से भी गहरा है। द्रष्टा में साक्षी की पहली झलक मिलती है। साक्षी में द्रष्टा का पूरा भाव, पूरा फूल खिलता है। द्रष्टा तो अभी भी बंटा है। द्रष्टा है तो दृश्य भी होगा। और दृश्य और द्रष्टा हैं, तो दोनों के बीच का संबंध, दर्शन, ज्ञान भी होगा। तो अभी तो खंड हैं। ___ जहां-जहां खंड हैं, वहां-वहां स्वप्न हैं; क्योंकि अस्तित्व अखंड है। जहां-जहां हम बांट लेते हैं, सीमायें बनाते हैं, वे सारी सीमायें व्यावहारिक हैं, पारमार्थिक नहीं। ___ अपने पड़ोसी के मकान से अलग करने को तुम एक रेखा खींच लेते, एक दीवाल खड़ी कर देते, बागुड़ लगा देते, लेकिन पृथ्वी बंटती नहीं। हिंदुस्तान पाकिस्तान को अलग करने के लिए तुम नक्शे पर सीमा खींच देते; लेकिन सीमा नक्शे पर ही होती है, पृथ्वी अखंड है। गरे आंगन का आकाश और तम्हारे पडोसी के आंगन का आकाश अलग-अलग नहीं है। तुम्हारे आंगन को बांटने वाली दीवाल आकाश को नहीं बांटती। जहां-जहां हमने बांटा है, वहां जरूरत है, इसलिए बांटा है। उपयोगिता है बांटने की, सत्य नहीं है बांटने में। सत्य तो अनबंटा है। और जो गहरे से गहरा विभाजन है हमारे भीतर, वह है देखने वाले का, दिखाई पड़ने वाले का। जिस दिन यह विभाजन भी गिर जाता है, तो आखिरी राजनीति गिरी, आखिरी नक्शे गिरे, आखिरी सीमायें गिरी। तब जो शेष रह जाता है अखंड, उसे क्या कहें? वह द्रष्टा नहीं कहा जा सकता अब, क्योंकि दृश्य तो खो गया। दृश्य के बिना द्रष्टा कैसा? इस द्रष्टा को जो हो रहा है, वह दर्शन नहीं कहा जा सकता, क्योंकि दर्शन तो बिना दृश्य के न हो सकेगा। तो द्रष्टा, दर्शन और दृश्य तो एक
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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