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________________ साथ ही बंधे हैं; तीनों होंगे तो साथ होंगे, तीनों जायेंगे तो साथ जायेंगे। तुमने देखा ! कोई भी स्वप्न जाता है तो पूरा, होता है तो पूरा । तुम ऐसा नहीं कर सकते कि स्वप्न में से थोड़ा-सा हिस्सा बचा लूं, या कि कर सकते हो ? रात तुमने एक स्वप्न देखा कि तुम सम्राट हो गये, बड़ा सिंहासन है, राजमहल है, बड़ा - फटा है। सुबह जाग कर क्या तुम ऐसा कर सकते हो कि सपने में से कुछ बचा लो। तुम कहो, ये सब, यह सिंहासन बचा लूं; जाये सब, कम से कम पत्नी तो बचा लूं; जाये सब, कम से कम अपना मुकुट तो बचा लूं। नहीं, या तो सपना पूरा रहता या पूरा जाता। अगर तुम जागे, तो यह संभव नहीं है कि तुम सपने का खंड बचा लो। द्रष्टा, दृश्य, दर्शन, एक ही स्वप्न के तीन अंग हैं। जब पूरा स्वप्न गिरता है और जागरण होता है, तो जो शेष रह जाता है, उसे तो तुमने स्वप्न में जाना ही नहीं था, वह तो स्वप्न में सम्मिलित ही नहीं हुआ था; वह तो स्वप्न से पार ही था, सदा पार था। वह अतीत था । वह स्वप्न का अतिक्रमण किये था । स्वप्न में जिसे तुमने जाना था, वह सब खो जायेगा – समग्ररूपेण सब खो जायेगा ! इसलिए तुमने परमात्मा की जो भी धारणा बना रखी है, जब तुम्हें परमात्मा का अनुभव होगा, तो तुम चकित होओगे, तुम्हारी कोई धारणा काम न आयेगी; तुम्हारी सब धारणाएं खो जायेंगी। जो तुम जानोगे, उसे स्वप्न में सोये-सोये जानने का कोई उपाय नहीं; धारणा बनाने का भी कोई उपाय नहीं । इसलिए तो कहते हैं, परमात्मा की तरफ जिसे जाना हो उसे सब धारणायें छोड़ देनी चाहिए। उसे सब सिद्धांत कचरे-घर में डाल देना चाहिए। उसे शब्दों को नमस्कार कर लेना चाहिए; विदा दे देनी चाहिए कि तुमने खूब काम किया संसार में, उपयोगी थे तुम, लेकिन पारमार्थिक नहीं हो । इसे भी समझ लें सूत्र के भीतर प्रवेश करने के पहले। व्यावहारिक सत्य पारमार्थिक सत्य नहीं है । व्यावहारिक सत्य की उपयोगिता है, वास्तविकता नहीं। पारमार्थिक सत्य की कोई उपयोगिता नहीं है, सिर्फ वास्तविकता है। अगर तुम पूछो कि परमात्मा का उपयोग क्या है, तो कठिनाई हो जायेगी। क्या उपयोग हो सकता है परमात्मा का ? क्या करोगे परमात्मा से ? न तो पेट भरेगा, न प्यास बुझेगी। करोगे क्या परमात्मा का? कौन-से लोभ की तृप्ति होगी ? कौन-सी वासना भरेगी ? कौन-सी तृष्णा पूरी होगी ? परमात्मा का कोई उपयोग नहीं। परमात्मा के कारण तुम महत्वपूर्ण न हो जाओगे । परमात्मा के कारण तुम शक्तिशाली न हो जाओगे । परमात्मा के कारण इस संसार में तुम्हारी प्रतिष्ठा न बढ़ जायेगी । परमात्मा का कोई भी तो उपयोग नहीं है। इसलिए तो जो लोग उपयोग के दीवाने हैं, वे परमात्मा की तरफ नहीं जाते। परमात्मा का आनंद है, उपयोग बिलकुल नहीं। मेरे पास लोग आते हैं, वे पूछते हैं : 'ध्यान करेंगे तो लाभ क्या होगा ?' लाभ ! तुम बात ही अजीब-सी कर रहे हो। तो तुम समझे ही नहीं, कि ध्यान तो वही करता है जिसने लाभ-लोभ छोड़ा; जिसके मन में अब लाभ व्यर्थ हुआ, जिसने बहुत लाभ करके देख लिये और पाया कि लाभ कुछ भी नहीं होता। धन मिल जाता है, निर्धनता नहीं कटती । पद मिल जाता है, दीनता नहीं मिटती । सम्मानसत्कार मिल जाता है, भीतर सब खाली का खाली रह जाता है। नाम जगत भर में फैल जाता है, भीतर सिर्फ दुर्गंध उठती है, कोई सुगंध नहीं उठती है, कोई फूल नहीं खिलते । भीतर कांटे ही कांटे, पीड़ा 272 अष्टावक्र: महागीता भाग-1
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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