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________________ दूसरा प्रश्नः आपके महागीता पर हुए पहले प्रवचन के समय अनेक लोग आंसू बहाकर रो रहे थे। उसका क्या मतलब है? क्या रोने वाले कमजोर मन के लोग हैं या आपकी वाणी का यह प्रभाव है? कृपया इस पर थोड़ा प्रकाश 1 | क बात पक्की है कि पूछने वाले डालें! | कठोर मन के आदमी हैं। आंसुओं में उन्हें सिर्फ कमजोरी दिखायी पड़ी। एक बात पक्की है पूछने वाले व्यक्ति के आंख के आंसू सूख गये हैं, आंखें बंजर हो गयी हैं, मरुस्थल जैसी; उनमें फूल नहीं खिलते। आंसू तो आंख के फूल हैं। पूछने वाले का भाव मर गया है। पूछने वाले का हृदय अवरुद्ध हो गया है। पूछने वाला सिर्फ बुद्धि से जी रहा होगा; उसने भाव की तिलांजलि दे दी। सोच-विचार से जी रहा होगा। प्रेम और करुणा और जीवन की तरफ जो लगाव की, चाहत की, आनंद की संभावना है-उसे इनकार कर दिया होगा। कोई रसधार नहीं बहती होगी। सूखा-साखा मरुस्थल जैसा मन हो गया होगा। इसीलिए पहली बात यह खयाल में आयी कि जो लोग रोते हैं, कमजोर मन के होंगे। किसने कहा तुम्हें कि रोना कमजोरी का लक्षण है? मीरा खूब रोयी है! चैतन्य की आंखों से झर-झर आंसू बहे! नहीं, कमजोरी के लक्षण नहीं हैं-भाव के लक्षण हैं; भाव की शक्ति के लक्षण हैं। और ध्यान रखना, भाव विचार से गहरी बात है। मैंने कहा: पहले कर्म की रेखा, फिर विचार की रेखा, फिर भाव की रेखा, फिर साक्षी का केंद्र। भाव साक्षी के निकटतम है। भक्ति भगवान के निकटतम है। कर्म बहुत दूर है। वहां से यात्रा बड़ी लंबी है। विचार भी काफी दूर है। वहां से भी यात्रा काफी लंबी है। भक्ति बिलकुल पास है। खयाल रखना, आंसू जरूरी रूप से दुख के कारण नहीं होते। हालांकि लोग एक ही तरह के आंसुओं से परिचित हैं जो दुख के होते हैं। करुणा में भी आंसू बहते हैं। आनंद में भी आंसू बहते हैं। अहोभाव में भी आंसू बहते हैं। कृतज्ञता में भी आंसू बहते हैं। आंसू तो सिर्फ प्रतीक हैं कि कोई ऐसी घटना भीतर घट रही है जिसको सम्हालना मुश्किल है-दुख या सुख; कोई ऐसी घटना भीतर घट रही है जो इतनी ज्यादा है कि ऊपर से बहने लगी। फिर वह दुख हो, इतना ज्यादा दुख हो कि भीतर सम्हालना मुश्किल हो जाये तो आंसुओं से बहेगा। आंसू निकास हैं। या आनंद घना हो जाये तो आनंद भी आंसुओं से बहेगा। आंसू निकास हैं। आंसू जरूरी रूप से दुख या सुख से जुड़े नहीं हैं-अतिरेक से जुड़े हैं। जिस चीज का भी अतिरेक हो जायेगा, आंसू उसी को लेकर बहने लगेंगे। तो जो रोये, उनके भीतर कुछ अतिरेक हुआ होगा; उनके हृदय पर कोई चोट पड़ी होगी; उन्होंने कोई मर्मर सुना होगा अज्ञात का; दूर अज्ञात की किरण ने उनके हृदय को स्पर्श किया होगा; उनके अंधेरे में कुछ उतरा होगा; कोई तीर उनके हृदय को पीड़ा और आह्लाद से भर गया-रोक न पाये वे अपने आंसू। मेरे बोलने के प्रभाव से इसका कोई संबंध नहीं, क्योंकि तुम भी सुन रहे थे। अगर मेरे बोलने 96 अष्टावक्र: महागीता भाग-1 |
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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