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________________ का ही प्रभाव होता तो तुम भी रोये होते, सभी रोये होते। नहीं! मेरे बोलने से ज्यादा सुनने वाले की हार्दिकता का संबंध है। जो रो सकते थे वे रोए। - और रोना बड़ी शक्ति है। एक बहुत अनूठी दिशा को मनुष्य-जाति ने खो दिया है—विशेषकर मनुष्यों ने खो दिया है, पुरुषों ने; स्त्रियों ने थोड़ा बचा रखा है, स्त्रियां धन्यभागी हैं। मनुष्य की आंख में, पुरुष हो कि स्त्री, एक-सी ही आंसुओं की ग्रंथियां हैं। प्रकृति ने आंसुओं की ग्रंथियां बराबर बनायी हैं। इसलिए प्रकृति का तो निर्देश स्पष्ट है कि दोनों की आंखें रोने के लिए बनी हैं। लेकिन पुरुष के अहंकार ने धीरे-धीरे अपने को नियंत्रण में कर लिया है। धीरे-धीरे पुरुष सोचने लगा है कि रोना स्त्रैण है; सिर्फ स्त्रियां रोती हैं। इस कारण पुरुष ने बहुत कुछ खोया है— भक्ति खोयी, भाव खोया। इस कारण पुरुष ने आनंद खोया, अहोभाव खोया। इस कारण पुरुष ने दुख की भी महिमा खोयी; क्योंकि दुख भी निखारता है, साफ करता है। इस कारण पुरुष के जीवन में एक बड़ी दुर्घटना घटी है। तुम चकित होओगे, दुनिया में स्त्रियों की बजाय दुगुने पुरुष पागल होते हैं! और यह संख्या बहुत बढ़ जाये, अगर युद्ध बंद हो जायें; क्योंकि युद्ध में पुरुषों का पागलपन काफी निकल जाता है, बड़ी मात्रा में निकल जाता है। अगर युद्ध बिलकुल बंद हो जाएं सौ साल के लिए, तो डर है कि पुरुषों में से नब्बे प्रतिशत पुरुष पागल हो जायेंगे। पुरुष स्त्रियों से ज्यादा आत्मघात करते हैं—दो गुना। आमतौर से तुम्हारी धारणा और होगी। तुम सोचते होओगे, स्त्रियां ज्यादा आत्मघात करती हैं। बातें करती हैं स्त्रियां, करतीं नहीं आत्मघात। ऐसे गोली वगैरह खाकर लेट जाती हैं, मगर गोली भी हिसाब से खाती हैं। तो स्त्रियां प्रयास ज्यादा करती हैं आत्मघात का. लेकिन सफल नहीं होतीं। उस प्रयास में भी हिसाब होता है। वस्ततः स्त्रियां आत्मघात करना नहीं चाहती-आत्मघात तो उनका केवल निवेदन है शिकायत का। वे यह कह रही हैं कि ऐसा जीवन जीने योग्य नहीं; कुछ और जीवन चाहिए था। वे तो सिर्फ तुम्हें खबर दे रही हैं कि तुम इतने वज्र-हृदय हो गये हो कि जब तक हम मरने को तैयार न हों शायद तुम हमारी तरफ ध्यान ही न दोगे। वे सिर्फ तुम्हारा ध्यान आकर्षित कर रही हैं। यह बड़ी अशोभन बात है कि ध्यान आकर्षित करने के लिए मरने का उपाय करना पड़ता है। आदमी जरूर खूब कठोर हो गया होगा, पथरीला हो गया होगा। स्त्रियां मरना नहीं चाहतीं, जीना चाहती हैं। जीने के मार्ग पर जब इतनी अड़चन पाती हैं— कोई सुनने वाला नहीं, कोई ध्यान देने वाला नहीं-तब सिर्फ तुम ध्यान दे सको, इसलिए मरने का उपाय करती हैं। लेकिन पुरुष जब आत्महत्या करते हैं तो सफल हो जाते हैं। पुरुष पागलपन में आत्महत्या करते हैं। ज्यादा पुरुष मानसिक रूप से रुग्ण होते हैं। कारण क्या होगा? बहुत कारण हैं। मगर एक कारण उनमें आंसू भी हैं। मनोवैज्ञानिक कहते हैं, पुरुषों को फिर से रोना सीखना होगा। यह बल नहीं है, जिसको तुम बल कह रहे हो—यह बड़ी कठोरता है। बल इतना कठोर नहीं होता; बल तो कोमल का है। तुमने देखा पहाड़ से झरना गिरता है, जलप्रपात गिरता है-कोमल जल! चट्टानें बड़ी सख्त! चट्टानें जरूर सोचती होंगी, हम मजबूत हैं, यह जलधार कमजोर है। लेकिन अंततः जलधार जीत जाती है; चट्टान रेत होकर बह जाती है। कर्म, विचार, भाव-और साक्षी 97.
SR No.032109
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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