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कोई जरा-सी बात कहेगा और बेचैनी खड़ी हो जायेगी। ढीले वस्त्र पहने हो, तुम थोड़े विश्राम में रहोगे। __ छोटी-छोटी चीजें फर्क लाती हैं। जीवन छोटी-छोटी चीजों से बनता है। गिलहरियों के द्वारा लाए गए छोटे-छोटे कंकड़-पत्थर जीवन के सेतु को निर्मित करते हैं। क्या तुम खाते हो, क्या तुम पहनते हो, कैसे उठते-बैठते हो, सबका अंतिम परिणाम है। सबका जोड़ हो तुम।
अब एक आदमी चला जा रहा है-चमकीले, भड़कीले, रंगीले वस्त्र पहने-तो कुछ खबर देता है। एक स्त्री चली जा रही है—बेहूदे, अश्लील, शरीर को उभारने वाले वस्त्र पहने-कुछ खबर देती है। एक आदमी ने सीधे-सादे वस्त्र पहने हैं, ढीले, विश्राम से भरे-कुछ खबर मिलती है उस
आदमी के संबंध में। ___मनोवैज्ञानिक कहते हैं, अगर तुम एक आदमी को आधा घंटा तक चुपचाप देखते रहो—कैसे वस्त्र पहने है, कैसा उठता, कैसा बैठता, कैसा देखता-तो तुम उस आदमी के संबंध में इतनी बातें जान लोगे कि तुम भरोसा न कर सकोगे।
हमारी हर गतिविधि, हर भाव-भंगिमा 'हमारी' है। भाव-भंगिमा के बदलने से हम बदलते हैं, हमारे बदलने से भाव-भंगिमा बदलती है।
तो यह तो केवल प्रतीक है। ये तुम्हें साथ देंगे। ये तुम्हारे लिए इशारे बने रहेंगे। ये तुम्हें जागरूक रखने के लिए थोड़ा-सा सहारा हैं।
'और कृपया यह भी समझाएं कि साक्षित्व, जागरूकता और सम्यक स्मृति में क्या अंतर है?'
कोई भी अंतर नहीं है। वे सब पर्यायवाची शब्द हैं। अलग-अलग परंपराओं ने उनका उपयोग किया है। जागरूकता कृष्णमूर्ति उपयोग करते हैं। सम्यक स्मृति, माइंडफुलनेस बुद्ध ने उपयोग किया है। साक्षित्व अष्टावक्र ने, उपनिषदों ने, गीता ने उपयोग किया है। सिर्फ भेद अलग-अलग परंपराओं का है। लेकिन उनके पीछे जिसकी तरफ इशारा है वह एक ही है।
| कर्म, विचार, भाव-और साक्षी
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