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________________ गाथार्थ : अग्निकाय का तीन दिन, गर्भज मनुष्य और तिर्यंच का तीन पल्योपम, देव और नारक का तैंतीस सागरोपम, व्यंतर का एक पल्योपम और ज्योतिष देवों का एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम उत्कृष्ट आयुष्य होता है ||२७|| असुराण अहिय अयरं, देसूणदुपल्लयं नव निकाये; । बारसवासुण पणदिण, छम्मासुक्किट्ठ विगलाउ ॥ २८ ॥ गाथार्थ : असुरकुमारों का कुछ अधिक एक सागरोपम, नवनिकाय का कुछ न्यून दो पल्योपम, विकलेन्द्रिय का क्रमशः 12 वर्ष, उनपचास दिन और छह मास है ॥२८॥ पुढवाई - दस पयाणं, अंतमुहुत्तं जहन्न आउठिई; । दससहसवरिसठिइआ, भवणाहिवनिरयवंतरि ॥ २९ ॥ गाथार्थ : पृथ्वीकाय आदि दश पदों की जधन्य आयुष्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त है । भवनपति, नारक और व्यंतरों की जधन्य स्थिति 10000 वर्ष है || २९ ॥ वेमाणिय जोइसिया, पल्लतयइंस आउआ हुंति; । सुरनरतिरिनिरएसु छ पज्जत्ति थावरे चउगं ॥ ३० ॥ गाथार्थ : वैमानिक और ज्योतिषी क्रमशः पल्योपम और उसके आठवें भाग के आयुष्यवाले होते हैं । देव, श्री दंडक प्रकरण ११
SR No.032106
Book TitleDandak Laghu Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages26
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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