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________________ उवओगा मणुएसु, बारस नव निरय तिरिय देवेसुः । विगलदुगे पण छक्कं, चउरिंदिसु थावरे तियगं ॥ २४ ॥ गाथार्थ : मनुष्य में 12 उपयोग; नारक, तिर्यंच और देवों में 9 उपयोग, दो विकलेन्द्रिय में 5 उपयोग, चउरिन्द्रिय में छह उपयोग और स्थावर जीवों में तीन उपयोग होते हैं ॥२४॥ संखमसंखा समए, गब्भयतिरि विगल नारय सुरा यः । मणुआ नियमा संखा, वण-णंता थावर असंखा ॥ २५ ॥ गाथार्थ : एक समय में गर्भज तिर्यंच, विकलेन्द्रिय, नारक और देवता; संख्याता अथवा असंख्याता, मनुष्य संख्याता ही, वनस्पति जीव अनंत तथा स्थावर जीव असंख्यात उत्पन्न होते हैं ॥२५॥ असन्नि नर असंखा, जह उववाए तहेव चवणे विः । बावीस सग ति दसवास, सहस्स उक्विट्ठ पुढवाई ॥ २६ ॥ ___ गाथार्थ : असंज्ञी मनुष्य असंख्य हैं । उपपात की तरह ही च्यवन हैं । पृथ्वीकाय आदि की उत्कृष्ट स्थिति बाईस हजार, सात हजार, तीन हजार और दस हजार वर्ष है ॥२६॥ तिदिणग्गि तिपल्लाऊ, नरतिरि सुर निरय सागर तितीसा;। वंतर पल्लं जोइस, वरिसलक्खाहियं पलियं ॥ २७ ॥ दंडक-लघुसंग्रहणी
SR No.032106
Book TitleDandak Laghu Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindrasuri
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar
Publication Year2018
Total Pages26
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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