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________________ ताली बजती नहीं हैं, परंतु क्या करूं? मेरा मन जबरन आपकी तरफ दौड़ता है। साथ ही मेरी आत्मा को आपने स्वीकृत किया है, ऐसा मैं मानता हूँ, कारण कि आप विकसित कमल जैसी दृष्टि से मुझे देखते हैं। उसके ऐसे वचन सुनकर यद्यपि प्रभु तो वीतरागी थे, तो भी उसके भावों को जानकर उसकी भव्यता के लिए प्रभु ने उसके वचनों को मान्य किया। ‘महान् पुरुष कहाँ वत्सल नहीं होते?" तब प्रभु उस गोशाला को साथ लेकर युगमात्र दृष्टि करते हुए स्वर्णखल नामक स्थान की ओर चल दिये। मार्ग में कुछ ग्वाले खीर बना रहे थे, यह देख गोशाले ने कहा, स्वामी! मैं क्षुधातुर हुआ हूँ, इसलिए चलो अपन पायसान्न का भोजन करें। सिद्धार्थ ने कहा कि, 'यह खीर बनेगी ही नहीं यह सुनकर वह दुष्ट बुद्धिवाला गोलाशा उन ग्वालों के पास जाकर कहने लगा कि, ये देवार्य त्रिकालज्ञ हैं, वे कह रहे हैं कि यह खीर आधी बनते ही इसका पात्र कच्चे पात्र के जैसे फूट जाएगा। यह सुनकर भयभीत हुए उन ग्वालों ने हांड़ी को बांस की खपचियों से बांध दी। परंतु उनमें चावलों की मात्रा अधिक होने से वह कुल्या अर्थात् हाँडी फूट गई। उन ग्वालों ने ठीकरों में रही उस खीर को खुशी खुशी खाली। गोशालक को उसमें से कुछ भी नहीं मिली। इससे उसने विशेष रूप से नियतिवाद को ग्रहण कर लिया। वहाँ से विहार करके प्रभु ब्राह्मण गांव में गये। उस गांव में मुख्य रूप से दो पाडे थे। उसके नंद और उपनंद नामक दो भाई मालिक थे। छ? के पारणे के दिन प्रभु नंद के पाड़े में गोचरी के लिए गये। नंद ने प्रभु को दही सहित कूर (करवा) वहराया। गोशाला उपनंद के पाड़े में उसका बड़ा घर देखकर आदर से भिक्षा के लिए गया। उपनंद की आज्ञा से एक दासी ने उसे बासी चावल दिये। उसे वे नहीं रुचे तो उसने उपनंद का तिरस्कार किया। उपनंद ने दासी को कहा कि यदि यह अन्न न ले तो उसके सिर पर डाल दे।' दासी ने भी वैसा ही किया। तब गोशाले ने कुपित होकर कहा कि- 'यदि मेरे गुरू का तपतेज हो तो इस उपनंद का घर जल कर भस्म हो जाय' प्रभु का नाम लेकर दिया गया यह श्राप भी निष्फल नहीं होना चाहिये। ऐसा सुन समीप में रहे व्यंतरों ने उपनंद का घर घास के पुंज की तरह जला डाला। वहाँ से विहार करके प्रभु चंपानगरी में पधारे। वहाँ दो-दो मासक्षमण करने की प्रतिज्ञा लेकर तीसरा चातुर्मास किया। सम्यक् समाधि को धारण कर प्रभु उत्कटिक आदि आसनों से कायोत्सर्ग करते हुए मुक्त की भांति वहाँ रहे। नगरी के बाहर त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 59
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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