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________________ अन्य दो मासक्षमण का पारणा करके गोशालक सहित प्रभु कोल्लाक सन्निवेश आए। वहाँ एक शून्यगृह में रात्रि प्रतिमा धारण करके रहे। गोशालक वानर की तरह चपलता करता हुआ उसके द्वार के आगे बैठा।। (गा. 402 से 429) उस गांव के स्वामी के सिंह नाम का एक पुत्र था। अभिनव यौवन वाला वह विद्युन्मति नामकी उसकी दासी के साथ रतिक्रीड़ा करने की इच्छा से उस शून्यगृहमां घुसा। उसने ऊंचे स्वर से कहा कि 'इस गृह में यदि कोई साधु, ब्राह्मण या मुसाफिर हो तो बोलना कि जिससे हम यहाँ से अन्यत्र चले जाएं।' प्रभु तो कायोत्सर्ग में स्थित थे, इससे वे तो मौन थे, परंतु उस गोशालक ने शब्द सुनने पर भी कपट से बोला नहीं। जब किसी का भी प्रत्युत्तर नहीं मिला, तब उस सिंह ने बहुत देर तक दासी के साथ वहाँ क्रीड़ा की। पश्चात् वह उस घर से निकल गया। तब प्रकृति से चपल और दुर्मति उस गोशाले ने जो कि द्वार के पास बैठा था, उसने वहाँ से निकलती उस विद्युन्मति दासी को हाथ से स्पर्श किया। तब वह जोर से चिल्लाई कि, 'स्वामी! किसी पुरुष ने मेरा स्पर्श किया।' तत्काल सिंह वापिस आकर गोशालक को पकड़ कर बोला कि 'अरे कपटी! तूने छिपकर हमारा अनाचार देखा। उस वक्त मैंने बुलाया तो भी तूने जवाब नहीं दिया।' ऐसा कहकर उस गोशालक को खूब मार मार कर सिंह अपने स्थान पर गया। तब गोशालक ने प्रभु से कहा कि, 'हे स्वामी! आपके देखते हुए इसने मुझे मारा।' सिद्धार्थ बोला कि, 'तू हमारे समान शील (सदाचार) का पालन क्यों नहीं करता। द्वार पर बैठ कर इस प्रकार की चपलता करेगा, तो मार क्यों नहीं मिलेगी? (गा. 430 से 438) वहाँ से प्रस्थान करके प्रभु पत्रकाल नामक गांव में आए। वहाँ भी पूर्व की भाँति प्रभु किसी शून्यगृह में प्रतिमा धारण करके रहे। गोशाला तो भयभीत होकर घर मे एक कोने में ही बैठ गया। उस गाँव के स्वामी का पुत्र स्कंद भी दंतिला नामकी दासी के साथ रतिक्रीड़ा करने वहाँ आया। उसने भी सिंह की भांति पूछा भी, परंतु किसी ने कोई जवाब दिया नहीं। जब वह क्रीड़ा करके वहाँ से निकला, तब वह गोशाला जोर से हंस पड़ा। 'यहाँ पिशाच की तरह गुप्त रहकर कौन हंस रहा है ? ऐसा बोलते हुए उस स्कंध ने गोशाले को खूब मारा 60 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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