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________________ कोई सेवक उसे अपने घर ले गया और खट्टे हो चुके कोद्रक और कूर दिये । अति क्षुधा के कारण उसने वैसा अन्न भी खा लिया । पश्चात् उसे दक्षिणा में एक रूपया दिया। उस रूपये की परीक्षा कराई तो वह भी खोटा (नकली ) निकला । तो वह लज्जित हो गया। तब जो भवितव्यता होती है, वही होता है' ऐसा नियातिवाद उसने ग्रहण किया । (गा. 391 से 397) दीक्षा के पश्चात् यह दूसरा चौमासा नालंदापाड़े में निर्गमन करके वहाँ से प्रस्थान करके प्रभु कोल्लाक सन्निवेश के पास आये । वहाँ बहुल नामक एक ब्राह्मण रहता था । वह अत्यन्त आदर से ब्राह्मणों को अपने घर जिमाता ( भोजन कराता था । उसके घर प्रभु भिक्षा के लिए आये । उसने घी मिश्री सहित खीर प्रभु को वहराई, तब देवताओं ने पंच दिव्य प्रगट किये। प्रभु ने यहाँ चौथे मासक्षमण का पारणा किया, जो पारणा श्रद्धा से वहराने वाले दातार प्राणी को संसार से तारनेवाला है । (गा. 398 से 401 ) इधर वो गोशालक सायंकाल में लज्जित होता हुआ चुपचाप उस शाला में घुसा वहाँ उसे प्रभु दिखाई नहीं दिये । 'तब स्वामी कहाँ हैं ? ऐसे वह लोगों को पूछने लगा । परंतु किसी ने भी उसे प्रभु के समाचार दिये नहीं । इससे वह दीन होकर प्रभु की शोध में पूरे ही दिन चारों ओर घूमा । 'अरे मैं तो पुनः एकाकी हो गया' ऐसा सोच कर मस्तक मुंडा कर, वस्त्र छोड़ कर वह वहाँ से निकल पड़ा । वह कोल्लाक सन्निवेश में आया । वहाँ उसने लोगों से यह बात सुनी कि 'इस बहुल ब्राह्मण को धन्य है कि मुनि को दान देने से जिसके घर में देवताओं ने रत्नों की वृष्टि की। यह बात सुनकर गोलाशक ने विचार किया कि ऐसा प्रभाव तो मेरे गुरु का ही है । अतः अवश्य वे यहाँ ही होंगे।' यह सोचकर वह प्रभु की शोध में घूमने लगा । निपुण दृष्टि से ढूंढते हुए एक स्थान पर कायोत्सर्ग में स्थित प्रभु को उसने देखा । वह प्रभु को प्रणाम करके बोला कि, 'हे प्रभु! पहले मैं दीक्षा के योग्य नहीं था, अब इन वस्त्रादिक का संग छोड़ देने से वास्तव में मैं निःसंग हुआ हुँ, इसलिए मुझे शिष्य रूप से अंगीकार करो और आप मेरे जीवनपर्यन्त गुरु बने। आपके बिना मैं क्षणभर भी नहीं रह सकता । हे स्वामी! आप राग रहित है, इसलिए आपके साथ स्नेह कैसे हो ? क्योंकि एक हाथ से त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित ( दशम पर्व ) 58
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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