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________________ का योजन करके मैं उस वस्त्र को शुक्ल पक्ष के चंद्र के समान एक संपूर्ण कर दूंगा । उसका मूल्य एक लाख दीनार होगी । वह अपने सहोदर बंधु की तरह आधा आधा बांट लेंगे। 'बहुत अच्छा' यह कहकर वह ब्राह्मण वापस प्रभु के पास आया। (गा. 1 से 14 ) ईर्यासमिति का शोधन करते हुए चलते चलते प्रभु कूर्मार ग्राम में आ पहुँचे। वहाँ नासिका के अग्र भाग पर नेत्र का आरोपण करके दोनों भुजा लंबी करके प्रभु स्थाणु की भांति प्रतिमा धारण करके रहे। उस समय कोई ग्वाला संपूर्ण दिन वृषभ को हांककर, गाँव की सीमा के पास जहाँ प्रभु कायोत्सर्ग ध्यान में खड़े थे, वहाँ आया । उसने विचार किया कि 'ये मेरे वृषभ यहाँ पर ही चरते रहें। मैं गांव में जाकर गायें दुहकर वापिस आ जाऊँगा ।' ऐसा सोचकर वह गांव में गया। बैल चरते चरते किसी अटवी में घुस गए। कारण कि गोप के बिना वे एक स्थान पर रह नहीं सकते । फिर वह गोपाल गांव से वहाँ आया, और उसने प्रभु को पूछा कि 'मेरे बैल कहाँ है' ? प्रतिमाधारी प्रभु कुछ बोले नहीं। जब प्रभु कुछ बोले नहीं, तब गोप ने सोचा कि 'यह कुछ जानते नहीं है । ' तब वह अपने बैलों को शोधने लगा । ढूंढ़ते २ सारी रात व्यतीत हो गई । वे बैल घूमते घूमते वापिस जहाँ प्रभु थे, वहाँ आ गये और स्वस्थ चित्त से वहाँ जुगाली करते हुए बैठे देखकर सोचने लगा कि 'इन मुनि ने मेरे बैलों को प्रभात में ले जाने की इच्छा से छिपा दिये होंगे।' ऐसा विचार करके वह अधम गोप जल्दी से बैलों की रस्सी उठा कर प्रभु को मारने के लिए दौड़ा। उस समय शक्र इन्द्र को विचार आया कि प्रभु आज प्रथम दिन में क्या कर रहे है ? देखूं । ऐसा विचार करके ज्ञान के द्वारा उपयोग लगाया। वहाँ तो उस गोप को प्रभु को मारने को उद्यत देखा। तब शीघ्र उसे स्थंभित करके, प्रभु के समीप आकर तिरस्कार पूर्वक उस गोप को कहा कि- 'अरे पापी ! इन सिद्धार्थ राजा के पुत्र को क्या तू नहीं जानता? तब इंद्र ने तीन प्रदक्षिणा पूर्वक मस्तक द्वारा प्रणाम करके प्रभु को विज्ञप्ति की, कि 'हे स्वामी! आपको बारह वर्ष तक उपसर्गों की परंपरा होगी । इसलिए उसका निषेध करने के लिए मैं आपका परिपार्श्वक होना चाहता हूँ। प्रभु ने समाधि पार कर इंद्र से कहा- “ अर्हन्त कभी भी पर सहाय की अपेक्षा नहीं रखते हैं। साथ ही अर्हत् प्रभु अन्य की सहायता से केवलज्ञान उपार्जन करे ऐसा कभी हुआ नहीं, होता नहीं और होगा भी नहीं । जिनेन्द्र तो त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 34
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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