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________________ राजा ने कुब्जा के लिए दूत भेजा। दूत ने वहाँ जाकर उससे मांग की। उसने दूत से कहा कि 'मुझे प्रद्योतराजा को बताओ। दूत ने आकर यथातथ्य हकीकत प्रद्योतराजा से कही। तत्काल ही ऐरावत हाथी पर इंद्र शोभाधारण करते हैं वैसे प्रद्योत राजा अनिलेवग हाथी पर बैठकर रात्रि में वहाँ आया। वह कुब्जा जैसे उसे रुची थी वैसे ही कुब्जा को भी रुचा। तब प्रद्योत ने कुब्जा से कहा- हे कमलाक्षि! मेरी नगरी में चलो।' तो कुब्जा बोली स्वामिन्! जिसके बिना में क्षणभर भी जीवित नहीं रह सकू, ऐसी ये देवाधिदेव की प्रतिमा को छोड़ कर मैं कहीं भी नहीं जा सकती। इसलिए हे राजन्! इस प्रतिमा के सदृश दूसरी प्रतिमा जी ला दो कि जिससे वह प्रतिमा यहाँ रखकर मैं यह प्रतिमा ले जाऊं। राजा ने उस प्रतिमा को अच्छी तरह निहार लिया एवं उस रात्रि में उसके साथ क्रीड़ा करके प्रातःकाल पुनः उज्जयिनी में आ गया। उज्जयिनी में आकर जैसी प्रतिमा उसने निरखी थी, वैसी ही हू-बहू जातिवंत श्री खण्ड काष्ट की प्रतिमा बनवायी। (गा. 445 से 463) पश्चात् उसने अपने मंत्रिगणों से पूछा, कि, 'मैंने यह देवाधिदेव की नूतन प्रतिमा बनवायी है, इनकी प्रतिष्ठा कौन करेगा? मंत्रियों ने कहा “स्वामिन्! कौशाम्बी नामक एक नगरी है, उसमें सार्थक नामवाला जितशत्रु नाम का राजा था। सर्व विद्यारूप सागर में प्रारंगत काश्यप नामका एक ब्राह्मण उसका पुरोहित था। उसके यशा नामकी स्त्री थी। उस विप्रदम्पती के कपिल नाम का पुत्र हुआ। कपिल की शिशुवय में ही काश्यप मृत्यु को प्राप्त हुआ। फलस्वरूप कपिल अनाथ हो गया। जितशत्रु राजा ने उस बालक कपिल का अनादर करके काश्यप के पुरोहित पद पर अन्य ब्राह्मण का स्थापन कर दिया। 'योग्यता बिना आम्नाय कहाँ से रहे ? छत्र की संप्राप्ति से सूर्य की किरणों भी जिसके शरीर का स्पर्श तक करती नहीं ऐसा वह ब्राह्मण नाचते तुरंग पर आरुढ़ होकर नगर में भ्रमण करने लगा। उसे देखकर कपिल की माता अपने पति का स्मरण करके रुदन करने लगी। ‘मंदभाग्यवाले को दुःख में रुदन करना, वह मित्र के समान है।' माता को रुदन करते देखकर कपिल भी उच्च स्वर से रोने लगा। कारण कि दर्पण में प्रतिबिंब के समान आप्तजन में शोक संक्रमित होता है। देनों नेत्रों से अश्रु की दो धारावाला माता का मुख ऊंचा करके कपिल बोला कि- हे माता! आप क्यों रो रही हो? माता ने उस पुरोहित को बताकर कहा कि- वत्स! इस 272 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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