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________________ गोभद्र सेठ ने वीरप्रभु के पास दीक्षा ली और विधिपूर्वक अनशन करके वे देवलोक में गये। वहाँ से उन्होंने अवधिज्ञान द्वारा अपने पुत्र शालिभद्र को देखकर उनके पुण्य से वशीभूत होकर पुत्रवात्सल्य से तत्पर हो गये। साथ ही कल्पवृक्ष के समान स्त्री सहित उसे प्रतिदिन दिव्य वस्त्र एवं नेपथ्य आदि प्रेषित करने लगे। इधर पुरुष योग्य जो जो कार्य होते वे सब भद्रा संभालती थी, और शालिभद्र तो पूर्वदान के प्रभाव से केवल भोगों को ही भोगता था। (गा. 73 से 87) अन्यदा कोई परदेशी व्यापारी रत्नकंबल लेकर श्रेणिक राजा के पास विक्रय करने हेतु आए। परंतु उनकी कीमत अति विशेष होने से श्रेणिक राजा ने वे खरीदे नहीं। तब वे घूमते घूमते शालिभद्र के घर गये। तब भद्रा ने मुँह मांगा मूल्य देकर उन सबको ही खरीद लिया। इतने में चेलणा ने उस दिन श्रेणिक महाराज से कहा कि, 'मेरे योग्य एक रत्नकंबल ला दो।' तब श्रेणिक महाराज ने एक रत्नकंबल खरीदने हेतु उस व्यापारी को बुलाया। उन्होंने कहा कि ‘सभी रत्नकंबल तो भद्रा ने खरीद लिये। तब श्रेणिक राजा के एक चतुर पुरुष को मूल्य देकर रत्नकंबल लेने के लिए भद्र के पास भेजा। उसने आकर रत्नकंबल की मांग की। तब भद्रा बोली कि, 'शालिभद्र की स्त्रियों को पैर पाँछने के लिए मैंने टुकड़े करके दे दिये हैं। इसलिए यदि जीर्ण रत्न कंबलों का कार्य हो तो श्रेणिक महाराज को पूछकर आओ एवं ले जाओ।' चतुर पुरुष ने यह सब वृत्तांत राजा को कह सुनाया यह सुनकर चेलणा रानी बोली कि 'देखों! आपमें और उस वणिक में पीतल और सुवर्ण जितना अंतर है। तब राजा ने कौतुक से उसी पुरुष को भेजकर शालिभद्र को अपने पास बुलाया। तब भद्रा ने राजा के पास आकर कहा कि 'मेरा पुत्र तो कभी भी घर से बाहर भी नहीं निकलता' इसलिए आप ही मेरे घर पधारने की कृपा करो।' श्रेणिक ने कौतुक से वैसा करना चाहा। तब क्षणभर के पश्चात् आने का कहकर भद्रा अपने घर आई एवं इतने समय में तो विचित्र वस्त्र और माणकादि द्वारा राजमार्ग की शोभा राजमहल से अपने घर तक अत्यत्न सुंदर करवा दी। तब उसके कहे अनुसार देवता के समान क्षण में तैयार की हुई शोभा को देखने हुए श्रेणिक राजा शालिभद्र के घर आया। जहाँ स्वर्ण के स्तंभ पर इंद्रनीलमणि के तोरण झूल रहे थे, द्वार की भूमि पर मोतियों के स्वस्तिकों की श्रेणियाँ की हुई थी, स्थान स्थान पर दिव्य वस्त्रों के चंदरवे बांधे हुए तथा सम्पूर्ण घर सुगंधित द्रव्य से धूपित किया हुआ था। यह सब विस्मय से त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 237
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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