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________________ विकसित नेत्रों से देखते हुए श्रेणिक राजा ने गृह में प्रवेश किया। तथा चार मंजिल तक चढ़ने पर सुशोभित सिंहासन को अलंकृत किया । तब भद्रा ने सातवीं भूमिका (मंजिल) पर स्थित शालिभद्र के पास जाकर कहा कि, पुत्र ! श्रेणिक यहाँ आए हैं, तुम 'उनको देखने को चलो।' तो (गा. 88 से 103 ) शालिभद्र ने कहा “माता ! उसके विषय में आप सबकुछ जानती हो, इसलिए योग्य मूल्य देकर उसे ले लो। मुझे वहाँ आकर क्या करना है ?" भद्रा ने कहा “पुत्र! श्रेणिक यह कोई खरीदने का पदार्थ नहीं है, परंतु वे तो सब लोगों के एवं तेरे भी स्वामी है। यह सुनकर शालिभद्र कुछ खेदित हुए, फिर भी चिंतन करने लगे कि, 'मेरे इस सांसारिक ऐश्वर्य को धिक्कार है कि जिससे मेरे कोई अन्य स्वामी भी हैं। इसलिए मुझे अब सर्प के फण जैसे इन भोगों से क्या लेना ? अब तो मैं श्री वीरप्रभु के चरणों में व्रत ग्रहण कर लूंगा ।" इस प्रकार उसे उत्कृष्ट संवेग प्राप्त हुआ। तथापि माता के आग्रह से वह स्त्रियों सहित श्रेणिक राजा के पास आये और विनय से राजा के प्रणाम किया। राजा श्रेणिक ने आलिंगन करके स्वपुत्रवत् अपनी गोद में बिठाया। साथ ही स्नेह से हर्षाश्रु भी गिर पडे। तब भद्रा बोली हे देव! अब इसे छोड़ दो। यह मनुष्य है, फिर भी इसे मनुष्य की गंध से बाधा होती है। इसके पिता देवता बने हैं, वे प्रतिदिन स्त्रियों के साथ अपने पुत्र को दिव्य वेष, वस्त्र तथा अंगरण देते हैं।' यह सुनकर श्रेणिक ने उसे जाने की इजाजत दी और वह अपनी सातवीं मंजिल पर चला गया। (गा. 104 से 113) तत्पश्चात् भद्रा ने राजा को विज्ञप्ति की कि आज तो यही पर भोजन करने की कृपा करें ।' भद्रा के अत्याग्रह से राजा ने स्वीकार कर लिया। तब भद्रा ने शीघ्र ही भोजन की तैयारी करवाई " श्रीमन्तों को क्या सिद्ध नहीं होता ? " तब राजा ने स्नान के योग्य तेल जल से और चूर्ण द्वारा स्नान किया। स्नान करते समय उनकी उंगली में से एक मुद्रिका (अंगूठी) गृहवापिका में गिर गई । राजा इधर उधर उसे शोधने लगा । भद्रा ने दासी को आज्ञा दी कि वापी का जल दूसरी ओर निकाल दें। ऐसा करने पर उस वापिका में दिव्य आभरणों के बीच में अपनी फीकी लगती अंगूठी देखकर राजा अत्यन्त विस्मित हुआ । राजा ने पूछा कि, 'यह सब क्या है ?' दासी बोली कि, 'प्रतिदिन शालिभद्र और उसकी स्त्रियों के निर्माल्य आभरणादि निकाल दिये जाते हैं, वे सब ये हैं ।' राजा विचार त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 238
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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