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________________ समय एक मासक्षमण तप धारी कोई मुनि पारणे के लिए एवं संगमक को तारने के लिए वहाँ आए। उनको देखने ही संगमक विचार करने लगा कि, ये सचेतन चिंतामणिरत्न, जंगम कल्पवृक्ष और कामधेनु रूपी मुनि महाराज मेरे भाग्य से ही इस समय यहाँ पधारे हैं, यह बहुत ही अच्छा हुआ। नहीं तो मुझ जैसे गरीब को ऐसे उत्तम पात्र का योग कहाँ से हो? मेरे किसी भाग्य के योग से आज चित्त, वित्त और पात्र रूप त्रिवेणी संगम हुआ है। इस प्रकार विचार करके उसने थाल से रही हुई संपूर्ण खीर मुनि महाराज को वहरा दी। दयालु मुनि महाराज ने उसके अनुग्रह के कारण उसे ग्रहण भी कर ली। मुनि भगवन्त उसके घर से बाहर निकले कि वहाँ धन्या आई और थाल में खीर दिखाई न देने से 'स्वयं ने दी हुई खीर पुत्र ने खा ली होगी' ऐसा सोचकर उसने पुनः खीर उसे दी। वह खीर संगमक ने अतृप्त रूप से आकंठ खा ली। इससे अजीर्ण हो जाने से उसी रात्रि को मुनि का स्मरण करते हुए संगमक मृत्यु को प्राप्त हुआ। (गा. 57 से 72) मुनिदान के प्रभाव से संगमक का जीव वहाँ से राजगृही नगरी मे गोभद्र सेठ की भद्रा नामकी स्त्री के उदर में अवतरा। भद्रा ने स्वप्न में पक्कशाली का क्षेत्र (खेत) देखा। उसने यह बात अपने पति को कही। तब पति ने तुझे ‘पुत्र होगा' ऐसा कहा। पश्चात् में दानधर्म आदि सुकृत्य करूं' ऐसा भद्रा को दोहद उत्पन्न हुआ। भद्र बुद्धिवाले गोभद्र सेठ ने उसके दोहद को पूर्ण किया। समय पूर्ण होने पर विदुरगिरि की भूमि जैसे रत्न को जन्म दे, वैसे भद्रा ने दिशाओं के मुख को उद्योत करने वाले पुत्ररत्न को जन्म दिया। स्वप्नानुसार माता पिता ने शुभ दिन में शालिभद्र ऐसा नामकरण किया। पांच धायमाताओं से लालन पालन करते हुए तब उसके पिता ने उसे पाठशाला में भेजकर सर्व कलाओं में उसे पारंगत किया। अनुक्रम से युवतिजनों का वल्लभ ऐसा वह शालिभद्र यौवन वय को प्राप्त होने पर नवीन प्रद्युम्न के सदृश समयी मित्रों के साथ घूमने फिरने लगा। उस नगर के श्रेष्टिगण अपनी बत्तीस कन्याओं को शालिभद्र को देने के लिए गोभद्र सेठ को विज्ञप्ति की। गोभद्र सेठ ने हर्षित होकर उन सबको स्वीकार किया एवं सर्व लक्षणसम्पूर्ण बत्तीस कन्याओं का विवाह शालिभद्र के साथ कर दिया। विमान के तुल्य रमणीय अपने मंदिर में स्त्रियों के साथ शालिभद्र विलास करने लगा। वह ऐसे आनंद में मग्न था कि रात्रि और दिन का भी उसे पता नहीं चलता। माता पिता उसके लिए भोग्य सामग्री का भी प्रबंध करते। किसी समय 236 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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