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________________ दशम सर्ग दशार्णभद्र और धन्नाशालिभद्र का चरित्र सुर-असुर से परिवृत्त श्री वीरप्रभु चंपानगरी से विहार करके अनुक्रम से दशार्ण देश में आए। उस देश में दशार्ण नगर में दशार्णभद्र नामक राजा राज्य करता था। एक वक्त वह राजा सांयकाल में अपनी सभा में बैठा था, इतने में चर पुरुषों ने आकर कहा कि, प्रातः काल में आपके नगर के बाहर श्री वीर प्रभु समवसरेंगे। सेवकों के ऐसे वचन सुनकर मेघ की गर्जना से जैसे, विदुरगिरि में रत्न के अंकुर प्रगट होते हैं, वैसे राजा के शरीर में से अतिहर्ष से रोमांच कंचुक उत्पन्न हुआ। तत्काल ही उन्होंने सभा के समक्ष कहा कि, प्रातः काल में मैं ऐसा समृद्धि से प्रभु को वंदन करूंगा कि वैसी समृद्धि से पूर्व में किसी ने भी उनको वंदन नहीं किया होगा । इस प्रकार मंत्री आदि के कहकर वह अपने अंतःपुर में गया और मैं प्रातः काल में प्रभु को इस प्रकार वंदन करूंगा, स्तुति करूंगा' ऐसी चिंतन करते हुए उसने वह रात्रि निर्गमन की । अभी सूर्योदय भी हुआ नहीं था, वहाँ तो राजसूर्य दशार्ण राजा ने नगर के अध्यक्ष आदि को बुलाकर आज्ञा दी कि मेरे महल से समवसरण तक विपुल समृद्धि से मेरे जाने योग्य मार्ग को शणगारो । (गा. 1 से 9 ) इधर वीरप्रभु नगर के बाहर पधारे और देवताओं ने समवसरण की । रचना की इधर क्षणभर में राजा की आज्ञानुसार सर्व कर दिया। देवताओं को जैसे मन द्वारा सर्व कार्य सिद्ध होते हैं, वैसे राजाओं के वचन द्वारा होते हैं ।" राजमार्ग की रज को कुंकुम के जल द्वारा शमन किया, मार्ग की भूमि पर सर्वत्र पुष्प बिछा दिये। स्थान स्थान पर सुवर्ण के स्तंभ सहित तोरण बांध दिये । सुवर्ण के पात्रों की श्रेणि से शोभित ऐसे मंत्र स्थापित कर दिये । भिन्न-भिन्न चित्रों से त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 232
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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