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________________ चित्रित वस्त्रों से सुशोभित, रत्नमय दर्पणों से आश्चर्यकारी वैसे और सुगन्धित मालाएँ मार्ग के चारों तरफ सुंदर स्तंभों के साथ लटका दी। ऊंचे दंड वाले, और मोती के झालर वाले मंडप कि जो मेघाडम्बर की शोभा की धारण करते थे, उससे भी आगे बढ़े वैसी एक छाया कर दी। स्थान-स्थान पर अग्नि के साथ धूप घटाओं के अंदर अगुरु, कपूर की धूम्र से मंडप को अंकुरित करे वैसा कर दिया। इस प्रकार मानो स्वर्ग का एक खंड हो वैसा मार्ग का सुशोभित करके मंत्रियों ने प्रभु के दर्शन को उत्साहित राजा को सर्व हकीकत निवेदन की। (गा. 10 से 18) राजा स्नान करके, दिव्य अंगराग और सर्व अंग पर आभूषण तथा शुद्ध वस्त्र धारण करके, पुष्प की माला पहन कर, उत्तम गजेन्द्र पर आरुढ़ हुआ। मस्तक पर श्वेतछत्र और दोनों ओर चंवरों से विराजमान महाराजा इंद्र की भांति चले। महामूल्यवान आभूषणों को धारण करके उनके हजारों सामन्त मानो उनका वैक्रिय स्वरूप हो उनके पीछे पीछे चल दिय। उनके पश्चात् चलित चंवरों से विराजित और इंद्राणी के रूप को भी पराभव करती हुई उनकी अंतःपुर की मृगाक्षियाँ उनके पीछे पीछे चली। मार्ग में बंदीजन राजा की स्तुति कर रहे थे। गायक गीत गा रहे थे और मार्ग को सजाने वाले अपना कौशल्य बता रहे थे। (गा. 19 से 23) इस प्रकार अन्य राजाओं के बड़े बड़े छत्रों से जिनके मार्ग में नवीन मंडप हो गया था, ऐसा दशार्णभद्र राजा अनुक्रम से समवसरण में आ गये। उन्होंने तीन प्रदक्षिणा देकर प्रभु को वंदना की। अपनी समृद्धि से गर्वित होकर अपने योग्य स्थान पर बैठे। (गा. 24 से 25) उस समय दशार्णपति को समृद्धि से गर्वित हुआ जानकर उनको प्रतिबोध करने के लिए इंद्र ने एक जलमय विमान की विकुर्वणा की। उसमें स्फटिक मणि जैसे निर्मल जल के प्रांतभाग में सुंदर कमल विकस्वर कर रहे थे। सारसपक्षियों के मधुर शब्द के प्रतिनाद हो रहे थे। देव वृक्ष और देवलताओं की श्रेणी में से झरते पुष्पों से वह सुशोभित था। नीलकमलों की शोभा से वह इंद्रनीलमणिमय हो वैसा लगता था। मरकत मणिमय नलिनी में सुवर्णमय विकस्वर कमलों का त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 233
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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