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________________ परीक्षा करने की इच्छा से वह चतुर बोला कि, 'हे भद्रे! अभी ब्रह्मादि देव इस नगर के बाहर प्रगट हुए थे और धर्म की व्याख्या करते थे। नगर जन उनको वंदन करने गये थे। उनके पास धर्म श्रवण करने गये थे। परंतु तुम तो कौतुक से भी उनको देखने नहीं गई। सुलसा बोली, हे महाशय! तुम सुज्ञ हो, फिर भी अज्ञानी की तरह क्यों पूछ रहे हो? ये विचारे ब्रह्मा आदि क्या है ? हिंसा करने के लिए शस्त्र धारण करने वाले, भोगों के लिए स्त्री को पास में रखने वाले, इस प्रकार स्वयं अधर्म में रहने वाले वे धर्म का व्याख्यान क्या देंगे? जगत् में अद्वितीय आप्तपुरुष श्री वीरप्रभु के दर्शन के पश्चात् एवं धर्म को अंगीकार करने के बाद जो उन देव को देखता है, वह वस्तुतः अपने स्वार्थ का घातक है।" सुलसा के इस प्रकार वचन सुनकर चित्त में हर्षित होता हुआ और सुलसा को साधु-साधु कहता हुआ अंबड अपने स्थान पर गया। वह महासती सुलसा अनिन्दित आर्हत् धर्म को सर्वदा हृदय में वहन करने लगी। (गा. 291 से 311) दशम पर्व का नवम सर्ग समाप्त त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 231
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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