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________________ इसलिए मैं तो एक साथ ही सारी गुटिका खा लूं कि जिससे बत्तीस लक्षणवाला एह ही पुत्र हो।' इस प्रकार अपनी बुद्धि से विचार करके सुलसा सारी गुटिका एक साथ ही खा गई जैसी भवितव्यता थी वैसी उसकी बुद्धि हो गई। “अहो! भवितव्यता बलवान है। समकाल में बत्तीस गुटिका खाने से उसके उदर में बत्तीस गर्भ उत्पन्न हो गए। उसकी वृद्धि होने से अनेक फूल वाली वल्ली की भांति वह अनेक गर्भ सहन नहीं कर सकी। वह कुशोदरी व्रत तुल्य सार वाले गर्भ को सहन न कर सकने से कायोत्सर्ग में रहकर उस देव का स्मरण करते ही वह देव हाजिर हुआ और पूछा कि 'मुझे क्यों स्मरण किया? तब उसने उन गुटिकाओं की सर्व हकीकत कह सुनाई। देव बोला तुमने एक साथ सब गुटिका क्यों खाई ? वे गुटिकाएँ अमोघ हैं। इससे तुझे उतने ही गर्भ धारण करने पड़ेंगे। भद्रे! सरल बुद्धि से तूने यह अच्छा नहीं किया। ऐसा करने से तुझे 32 पुत्र समान आयु वाले होंगे। हे महाभागे! अब खेद मत कर। क्योंकि भवितव्यता बलवान है। अब मैं तेरी गर्भ पीड़ा का हरण कर लेता हूँ। इसलिए स्वस्थ हो जा। “ऐसा कहकर वह देव सुलसा की गर्भ पीड़ा का हरण करके स्वस्थान पर चला गया। सुलसा स्वस्थ होने पर भी भूमि के समान गूढगर्भा हो गई। (गा. 78 से 87) गर्भसमय परिपूर्ण होने पर शुभ दिन में शुभ मुहूर्त में सुलसा ने बत्तीस लक्षणवाले बत्तीस पुत्रों को जन्म दिया। धायमाताओं से लालित होते हुए वे पुत्र अनुक्रम से विंध्यगिरि में हाथी के बच्चे के जैसे अखंडित मनोरथ से बड़े हुए। गृहलक्ष्मी रूपी पक्षी के क्रीड़ा वृक्ष जैसे वे बालक आंगन में रमत गमत करके शोभने लगे। नाग रथिक उन कुमारों को उत्संग में ले लेकर स्नेह से आनंदाश्रु से स्नान कराता था। पैरों पर, गोद में, स्कंधों पर और मस्तक पर चढ़ते और लिपटते उन कुमारों से नाग रथिक सिंह के शावकों से पर्वत के समान शोभता था। नाग रथिक के सर्व कुमार वय में समान थे, इससे वे सभी श्रेणिककुमार के अनुयायी अर्थात् अंगरक्षक हुए। (गा. 88 से 93) एक बार प्रसेनजित् राजा ने अपने पुत्रों की राज्ययोग्यता विषयक परीक्षा करने के लिए सबको एक साथ भोजन करने बिठाकर पायसान्न (खीर) के थाल उनके पास रखाये। जब वे कुमार भोजन करने के लिए प्रवृत्त हुए, तब 130 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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