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________________ राजा ने उन पर व्याघ्र जैसे मुख फाड़ कर आते हुए श्वानों को छोड़ दिया। श्वानों के आते ही दूसरे सब कुमार तो शीघ्र ही उठकर भाग गये, परंतु बुद्धि के धाम रूप श्रेणिक कुमार अकेले ही वहाँ बैठे रहे। वह दूसरी थालियों में से थोड़ाथोड़ा पायसान्न उन धानों को देने लगे जैसे ही वे श्वान उसे चाटने लगते कि स्वयं अपनी थाली में से पायसान्न खाने लगे। इस प्रकार उन्होंने छककर खाया। यह देखकर राजा खूब प्रसन्न हुआ। एवं विचार किया कि 'यह श्रेणिक कुमार किसी भी उपाय से शत्रु आदि को अवरुद्ध करके स्वयं पृथ्वी का भोग करेगा। (गा. 94 से 98) एक बार पुनः परीक्षा करने के लिए राजा ने सर्व कुमारों को एकत्रित करके मोदक से भरे करंडक और पानी से भरे घड़े मुदित (सील) करके दिये, और कहा कि 'इन करंडकों में से मुद्रा (सील) तोड़े बिना मोदक खाओ और घड़े में छिद्र किये बिना पानी पीओ।' श्रेणिक के बिना उनमें से कोई भी मोदक खाने और पानी पीने में समर्थ नहीं हुआ। “बलवान् पुरुष भी बुद्धि साध्य कार्य में क्या कर सकते हैं ? श्रेणिक ने उस करंडक को बारबार खूब हिलाकर अंदर मोदक का चूर्ण कर डाला, उसकी शलाकाओं के छिद्र में से खिरा खिरा कर खाया और घड़े नीचे रूपा की सीप रखकर घड़े में से झरते जल बिन्दु से भरकर पानी पिया। "बुद्धिमान पुरुष को क्या दुःसाध्य है।" इस प्रकार श्रेणिक की बुद्धि संपत्ति की परीक्षा करके कुशाग्र बुद्धिवाले राजा ने उसमें राज्य की योग्यता का निश्चय किया। (गा. 95 से 104) किसी समय कुशाग्रनगर में बारबार अग्नि का उपद्रव होने लगा। तब राजा प्रसेनजित् ने यह आघोषणा करवाई कि, “इस नगर में जिसके घर में से आग लगेगी, उसे रोगी ऊँट की भांति नगर में से बाहर निकाल दिया जाएगा। एक दिन रसोईये के प्रमाद से राजा के महल में से ही अग्नि उत्पन्न हो गई। "ब्राह्मण की तरह अग्नि भी किसी की नहीं होती।" जब वह अग्नि बढ़ने लगी, तब राजा ने अपने कुंवरों को आज्ञा दी कि 'मेरे महल में से जो वस्तु जो कुमार ले जाएगा, वह उसके स्वाधीन होगी। राजा की आज्ञा से अन्य सर्व कुमार अपनी रुचि के अनुसार हाथी, घोड़े तथा अन्य वस्तुएँ ले गये और श्रेणिक कुमार तो मात्र एक भंभा का वाद्य ही लेकर निकला। यह देखकर राजा ने पूछा त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 131
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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