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________________ में साथ ही ब्रह्मचर्य में तत्पर रहने, पति के दुःख से कोमल मनवाली होकर समाधि में रहने लगी। (गा. 5 3 से 6 3) इधर प्रथम स्वर्ग में देवों की सभा में शक्र इंद्र ने प्रशंसा की कि- “अभी भरतक्षेत्र में सच्ची श्राविका सुलसा है।" यह सुनकर एक देव ने विस्मित होकर कान ऊंचे कर लिए और सुलसा के श्राविकापने की परीक्षा करने के लिए यहाँ आया। उस समय सुलसा देवार्चन करती थी, वहाँ वह साधु का रूप लेकर 'निस्सिही' बोलता हुआ घर देरासर में घुसा। अभ्र बिना की वृष्टि की भांति उन मुनि को अचानक आया हुआ देखकर सुलसा ने उसको भक्ति से वंदना की एवं उनके आने का कारण पूछा। वह बोला- “मुझे किसी वैद्य ने कहा है कि तुम्हारे घर में लक्षपाक तेल है, तो वह ग्लान साधु के लिए मुझे दो।" मेरा लक्षपाक तेल साधु के उपयोग में आने से सफल होगा।' ऐसा बोलती हुई वह हर्ष से तेल का कुंभ लेने को चली। कुंभ लेकर आते समय देवता ने अपनी शक्ति से उसके हाथ में से उस तेल के कुंभ को गिरा दिया। तत्काल नीड़ में से पतित हुए अंडे की तरह वह फट् से फूट गया। तो सुलसा पुनः दूसरा तेल का कुंभ लाई, तो वह भी इसी प्रकार फूट गया। तथापि उसे किंचित्मात्र भी खेद नहीं हुआ। फिर वह तीसरा लेकर आई तो वह भी फूट गया, तो उसे चिंता हुई कि 'इन मुनि की याचना निष्फल होने से अवश्य ही मैं अल्प पुण्यवाली हूँ।' इस प्रकार उसके भाव देखकर वह देव अपना स्वरूप प्रगट करके बोला कि, “हे भद्रे! इंद्र ने तेरे श्राविकापन की प्रशंसा की, जिससे विस्मित होकर मैं तेरी परीक्षा करने के लिए यहाँ आया था, तो अब मैं तुमसे संतुष्ट हुआ हूँ। इसलिए तू वर मांग यह सुनकर सुलसा बोली- “हे देव! यदि आप संतुष्ट हुए हो तो मैं अपुत्र हूँ, अतः मुझे पुत्र दो। इसके अतिरिक्त मेरी अन्य कोई इच्छा नहीं है। देव ने उसे बत्तीस गुटिका देकर कहा कि- “अनुक्रम से इन गुटिकाओं का तू भक्षण करना जिससे जितनी ये गुटिकाएँ हैं, उतने ही तुझे पुत्र होंगे। अनघे! इसके अतिरिक्त भी पुनः भी जब तुझे प्रयोजन हो, तब मेरा स्मरण करना, मैं तुरंत ही आ जाऊंगा।' ऐसा कहकर देव अंतर्धान हो गया। (गा. 64 से 77) देव के जाने के बाद सुलसा ने विचार किया कि 'अनुक्रम से इतनी सारी गुटिका खाने के बहुत से बालक होंगे, तो उनकी अशुचि को कौन चूंथे। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 129
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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