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________________ मनुष्य होते हैं, परंतु जो माया आदि करता है, वह यहाँ पशु रूप में रहता है, वह मनुष्य आगामी भव में पशु होता है। इससे जीव की पृथक् पृथक् गति में उत्पत्ति कर्म के आधीन हैं। इसी से प्राणियों में विविधता दिखाई देती है। फिर कारण के अनुसार ही कार्य होता है, यह कहना भी असंगत हैं। कारण कि शृंग आदि में से शर प्रमुख उग जाते हैं।" ऐसी प्रभु की वाणी सुनकर सुधर्मा ने पांच सौ शिष्यों सहित प्रभु के चरणकमल में दीक्षा ली। __(गा. 118 से 130) पश्चात् अपना संशय निवारण करने के लिए मंडिक प्रभु के पास आये। उनको प्रभु ने कहा कि, “तुझे बंध और मोक्ष के विषय में संशय हैं। परंतु बंध और मोक्ष आत्मा को होता है, यह बात प्रसिद्ध है। मिथ्यात्वादि द्वारा किया हुआ कर्म का जो संबंध है, वह बंध कहलाता है, उस बंध के कारण प्राणी डोरी से बंधा हुआ हो, वैसे नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देवता रूपी चार गति में परिभ्रमण करता हुआ परम दारुण दुःख का अनुभव करता है। ज्ञान, दर्शन और चारित्र प्रमुख हेतु से जो कर्म का वियोग होता है, वही ही तो मोक्ष है। वह प्राणी को अनंत सुख प्रदान करता है। यद्यपि जीव और कर्म का परस्पर संयोग अनादि सिद्ध है, वैसे ही ज्ञानादि से जीव और कर्म का वियोग हो जाता हैं।" इस प्रकार प्रभु के वचन सुनकर उसका संशय दूर हो गया, उस मंडिक ने साढ़े तीन सौ शिष्यों के साथ व्रत ग्रहण किया। इसके पश्चात् मौर्यपुत्र अपना संदेह निवारण करने के लिए प्रभु के पास आये। प्रभु ने फरमाया- “मौर्यपुत्र! तुमको देवता के विषय में संदेह है, परंतु वह मिथ्या है। देखो, ये समवसरण में स्वयमेव आए इंद्रादिक देवता प्रत्यक्ष है। शेषकाल में संगीत कार्यादि की व्यग्रता से और मनुष्य लोक की दुःसह गंध से वे यहाँ आते नहीं हैं। परंतु इससे उनका अभाव है यह नहीं समझना। वे अर्हन्त के जन्माभिषेक आदि अनेक प्रसंगों पर पृथ्वी पर आते हैं। उसका कारण श्रीमत् अरिहंत का अति श्रेष्ठ प्रभाव हैं।' इस प्रकार भगवन्त की वाणी से मौर्यपुत्र ने तत्काल प्रतिबोध का प्राप्त कर अपने ३५० शिष्यों के साथ दीक्षा अंगीकार की। (गा. 131 से 141) इसके पश्चात् अकंपित प्रभु के पास आए। प्रभु ने कहा कि, “नजर से नहीं दिखाई देने के कारण नारकी नहीं है, ऐसी तेरी बुद्धि है। परंतु नारकी त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 121
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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