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________________ पंचम सर्ग श्री महावीर स्वामी को केवलज्ञान और चतुर्विध संघ की स्थापना जंभृक गांव के बहिर्भाग में ऋजुवालिका नदी के उत्तर तट पर शामाक नाम के किसी गृहस्थ का क्षेत्र था । वहाँ किसी गुप्त - अस्पष्ट चैत्य के निकट शालवृक्ष के नीचे प्रभु छट्ठ तप करके उत्कटिक आसन में आतापना करने लगे । (गा. 1 से 2 ) वहाँ विजय मुहूर्त्त में शुक्लध्यान में वर्तते एवं क्षपक श्रेणी पर आरूढ़ हुए प्रभु के चार घाति कर्म जीर्ण डोरी की भांति तत्काल टूट गये। वैशाख महिने के शुक्ल दशमी को चंद्र के हस्तोत्तरा नक्षत्र में आने पर दिन के चतुर्थ प्रहर में प्रभु को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। इंद्रगण आसनकंप से प्रभु के केवलज्ञान को जानकर हर्षित होते हुए देवताओं के साथ वहां आए। इस अवसर पर कोई देवता कूदने लगे कोई नाचने लगे, कोई हंसने लगे, कोई गाने लगे, कोई सिंह की भांति गर्जना करने लगे, कोई अश्व के सदृश हेषारव करने लगे, कोई हस्ति के समान नाद करने लगे। कोई रथ की तरह चीत्कार करने लगे एवं कोई सर्प की तरह फुत्कार करने लगे। प्रभु के केवलज्ञान से हर्ष के कारण चारों निकायों के देवता अन्य भी विविध चेष्टाएँ करने लगे । तत्पश्चात् देवताओं ने तीन किलेवाला एवं प्रत्येक किले में चार चार द्वार वाला समवसरण रचा। 'यहाँ ( रत्न सिंहासन पर विराज कर देशना देना आदि) सर्व विरति के कोई योग्य नहीं है, ऐसा जानने पर भी प्रभु ने अपना कल्प जानकर उस समवसरण में बैठकर देशना दी। उनके तीर्थ में हाथी के वाहन वाले, कृष्णवर्णी, वामभुजा में बिजोरा और दक्षिण भुजा में नकुल को धारण करता हुआ मातंग नाम का यक्ष और सिंह के आसन वाली, नीलवर्णी, दो वाम भुजा में बिजोरा और वीणा तथा दो दक्षिण भुजा में पुस्तक और अभय को धारण करती हुई सिद्धायिका नामक देवी - ये त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित ( दशम पर्व ) 113
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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