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________________ पुरुष प्रभु को वेदना करने पर भी देवसंबंधी लक्ष्मी को भोगने वाले हुए। वह दुराशयी ग्वाला प्रभु को वेदना देने से मरकर सातवी नरक के दुःखों का पात्र हुआ। प्रभुजी के भैरव ( भयंकर) नाद से वह उद्यान महाभैरव नाम से प्रख्यात हुआ । एवं लोगों ने वहाँ एक देवालय बंधाया। (गा. 618 से 649) इस प्रकार श्री वीरप्रभु जी को जो जो उपसर्ग हुए, उसमें जघन्य उपसर्गों में कटपूतना ने जो शीत उपसर्ग किया वह, उत्कष्ट मध्यम उपसर्गों में संगम ने जो कालचक्र फैंका वह, उत्कृष्ट से उत्कृष्ट उपसर्गों में कानों से कीलों का उद्धार किया वह, इस प्रकार प्रभुजी को उपसर्गों का प्रारंभ भी ग्वाले से हुई अर्थात् ग्वाले का उपसर्ग अंतिम हुआ । (गा. 650 से 652) प्रभु ने तपस्या में एक छमासिक, नव चातुर्मासक्षपण, छ द्विमासिक, बारह मासिक, बहत्तर अर्धमासिक, एक षण्मासिक, दो त्रमासिक, दो अढीमासिक, तीन भद्रादिक प्रतिमा (भद्र, महाभद्र, सर्वतोभद्र - दो, चार और दस दिन की), कौशांबी नगरी में छः मास में पांच दिन कम तक अभिग्रह धारण (उपवास), बारह अष्टमभक्त, अंतिम रात्रि में कायोत्सर्ग युक्त एक रात्रि की बारह प्रतिमा, एवं दौ सो उनत्तीस छट्ठ - इस प्रकार तपस्या हुई एवं तीन सौ उनपचास पारणे हुए। इस प्रकार व्रत लिया उस दिन से लेकर साढे बारह वर्ष और एक पखवाड़े में तपस्याएँ हुई। उन्होंने नित्यभक्त या चतुर्थभक्त (एक उपवास) किया ही नहीं । इस प्रकार जलरहित सर्व तपस्या करते हुए, उपसर्गों को जीतते हुए और छद्मस्थ रूप में विचरते हुए श्री वीर प्रभु ऋजुवालिका नामक बड़ी नदी के तट पर स्थित जंभृक नाम के गांव के समीप आए। (गा. 653 से 658) 112 दशम पर्व का श्री महावीर द्वितीय साग्रषड्वार्षिक छद्मस्थ विहार वर्णन नामक चतुर्थ सर्ग । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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