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________________ जाए? इसलिए इसे मधुर वाणी से बोलता हुआ कौशांबी नगरी में ले आया। तथा उसे राजमार्ग पर बेचने के लिए खड़ी कर दी। दैवयोग से वहाँ धनावह सेठ आ पहुँचे। उन्होंने वसुमती को देखकर सोचा कि “इसकी आकृति को देखने पर यह कोई सामान्य मनुष्य की पुत्री नहीं लगती है। परन्तु यूथ से भ्रष्ट मृगली पारधी के हाथ में आई हो वैसे माता-पिता से विखूटी हुई यह कन्या निर्दय मनुष्य के हाथ लग गई लगती है एवं इसे मूल्य लेने के लिए बेचने के लिए खड़ी कर दी है। यह बेचारी अवश्य ही किसी हीन मनुष्य के हाथ में फंस जाएगी। बेहतर यही होगा कि मैं ही अधिक द्रव्य देकर इस कृपापात्र कन्या को खरीद लूँ। अपनी पुत्री की तरह मैं इसकी उपेक्षा करने में अशक्त हूँ। किसी भी अड़चन के बिना मेरे घर रहते हुए दैवयोग से कदाच इस बाला का उसके स्वजनों का संयोग हो भी जाय।" इस प्रकार विचार करके सुभट की इच्छानुसार उसे मूल्य देकर धनावह सेठ अनुकंपा से उस बाला को अपने घर ले गये। उन्होंने स्वच्छ बुद्धि से कहा कि हे वत्से! तू किसकी कन्या है ? तेरे, स्वजन वर्ग कौन है, यह भय छोड़कर कह तू मेरी पुत्री ही है। वह अपने कुल की अति महत्ता होने से कुछ भी कह नहीं सकी। इससे कुछ भी न बोलकर सायंकाल की कमलिनी की भांति अधोमुख खड़ी रही। सेठ ने अपनी पत्नि मूला को बुलाकर कर कहा कि, “प्रिया! यह कन्या अपनी दुहिता है। उसका अति यत्नपूर्वक पुष्प की भांति पालन पोषण करना। श्रेष्ठी के इन वचनों को सुनकर वह बाला वहाँ अपने घर की तरह ही रहने लगी और बालचन्द्र की लेखा के समान सबके नेत्र को आनंद देने लगी। उसके चंदन जैसे शीतल, विनय युक्त वचन और शील से रंजित होकर श्रेष्ठी के परिवार ने उसका ‘चंदना' नामकरण कर दिया। (गा. 498 से 541) अनुक्रम से करभ जैसे उरुवाली वह बाला यौवनवय को प्राप्त हुई। उस समय जैसे समुद्र पूर्णिमा की रात्रि को आनंददायक होता है, वैसे ही श्रेष्ठी को हर्षित करने लगी। स्वभाव से ही रूपवती उपरान्त यौवन को प्राप्त कर विशेष स्वरूपवान् हुई उस चंदना को देखकर मूला सेठानी मन में ईर्ष्या भाव लाकर सोचने लगी कि, “सेठ जी ने इस कन्या को पुत्रीवत् रखा है, परंतु अब उसके रूप से मोहित होकर कहीं सेठ उसके साथ परण जाए तो जीतेजी मैं तो मरे जैसी हो जाऊंगी। इस प्रकार स्त्रीत्व के अनुरूप तुच्छ हृदय के कारण वह मूला तब से ही उदास रहने लगी। एक बार सेठ जी ग्रीष्म ऋतु के ताप से पीड़ित त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 105
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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