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________________ होकर दुकान से घर आए, उस वक्त दैवयोग से कोई सेवक पैर धोने के लिए हाजिर नहीं था, इसलिए अति विनीत चंदना खड़ी हुई। तब सेठ जी के मना करने पर भी वह पितृभक्ति से सेठजी के पैर धोने में प्रवृत्त हुई। उस समय उसके स्निग्ध श्याम और कोमल केशपाश अंग की शिथिलता से छूटकर जलपंकिल भूमि में गिर पड़ा। तब ‘इस पुत्री का केशपाश भूमि के कीच से मलिन न हो जाए' ऐसा सोचकर सेठ ने सहजभाव से यष्टिसे उसे ऊंचा किया और फिर आदर से बांध दिया। गवाक्ष से मूला ने यह सब देखा, तो उसने सोचा कि “मुझे पहले ही ऐसा विचार आया था, वह वैसा ही लग रहा है। इस युवा स्त्री का केशपाश सेठ ने स्वयं ने बांधा। ये उसके पत्रिरूप का प्रथम चिह्न सूचित करता है। क्योंकि पिता का कार्य इस प्रकार करने का होता नहीं है। इसलिए अब इस बाला का मूल से ही उच्छेद करना चाहिये। ऐसा निश्चय करके दुराशा डाकण की तरह ऐसे समय की राह देखने लगी। सेठ क्षणमात्र विश्राम करके पुनः बाहर गये, तब मूला ने नापित (नाई) को बुलाकर चंदना का मस्तक मुंडा दिया। फिर उसके पैरों में बेड़ी डालकर क्रोध रूपी राक्षस के वश में हुई उस मूला ने लता से जैसे हथिनी की वैसे चंदना को अत्यन्त ताड़ना दी। पश्चात् घर से दूर के विभाग में चन्दना को डालकर द्वार बंद करके मूला ने अपने परिवार आर्थत् सेवक आदि को कहा कि 'सेठ यदि इस विषय में पूछे तो कुछ भी कहना नहीं। इस उपरांत भी यदि कोई कहेगा तो वह मेरी कोप रूपी अग्नि में आहुति रूप हो जाएगा। इस प्रकार की नियंत्रणा करके मूला अपने पीहर चली गई। सायंकाल में सेठ ने आकर पूछा कि चंदना कहाँ है ? तो मूला के भय से किसी ने भी उत्तर नहीं दिया। सेठ ने सोचा 'वत्सा चंदना कहीं खेलती होगी अथवा ऊपर होगी।' इसी प्रकार रात्रि में भी पूछा, तो भी किसी ने कुछ भी जवाब नहीं दिया। तब सरल बुद्धि वाले सेठ ने सोचा कि चंदना सो गई होगी।' किन्तु दूसरे दिन भी उसे चंदना दिखाई नहीं दी। इसी प्रकार तीसरे दिन भी उसे नहीं देखा, तब शंका और कोप से आकुलव्याकुल हुए सेठ ने परिजनों से पूछा, 'अरे सेवकों। बताओगे नहीं तो मैं तुम सबका निग्रह करूंगा।' यह सुनकर वृद्ध दासी ने सोचा कि 'मैने तो बहुत सा जीवन व्यतीत कर लिया, अब तो मृत्यु नजदीक है, इसलिए यदि मैं चंदना का वृत्तांत बता भी दूंगी, तो मूला मेरा क्या कर लेगी?' ऐसा विचार करके उसने मूला और चंदना का सर्व वृत्तांत सेठ को कह सुनाया। फिर उस वृद्धाने जाकर जहाँ चंदना को रखा था, 106 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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