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________________ कक्षा में प्रवेश किया। इसी प्रकार आगे जाने पर ऐरावत हाथी जैसे क्षीरसागर में प्रवेश कर क्षीरतरंग जैसी उज्जवल तीसरी कक्षा में प्रवेश किया। (गा. 122 से 130) उसमें स्वर्ग में समावेश न होने से अप्सरा ही मानो यहाँ आई हों ऐसे दिव्य आभूषणों से सुसज्जित स्त्रियाँ वहाँ एकत्रित थी। चतुर्थ गढ में उन्होंने प्रवेश किया तब वहाँ तरंगों से तरल और हंसप्रमुख पक्षियों से व्याप्त जलाक्रांत मणिमय पृथ्वी दिखाई दी। वहाँ पृथ्वी और दीवारों में दर्पण बिना भी अपनी आत्मा का अवलोकन करती और उत्तम शृङ्गार धारण करती आलोक वासंगनाधे उसे देखने में आई। वहाँ मैंना तोते आदि के मांगलिक उच्चार उनको सुनाई दिये और गीत नृत्य में आकुल दासी वर्ग भी दृष्टि में पड़ा। वहाँ से वसुदेव ने पांचवें गढ में प्रवेश किया। वहाँ स्वर्गगृह के जैसी मनोहर मरकत मार्ग की भूमि दिखाई दी। उसमें मोती और प्रवाल की मालाएं तथा लटकते हुए चंवर मायाकृति से रचित दिखाई दिये। साथी ही सुंदर रूप और वेशयुक्त एवं रत्न अलंकारों से भरपूर ऐसी अनेक दासियाँ जाने स्तंभ पर संलग्न पुतलियां हैं, दृष्टिगोचर हुई। वहाँ से छटे कक्ष में प्रवेश किया। वहाँ दिव्य सरोवर जैसी सर्वत्र पदमराग मणि की भूमि दिखाई दी। वंहा लालरंग के अंगराग से पूर्ण मणि के पात्र और दिव्य वस्त्र धारण की हुई मूर्तिमान संध्या सी अनेक मष्णाक्षियों उनकी दृष्टि में पड़ी। वहाँ से सातवीं कक्षा में गए। वहाँ लोहिताक्ष मणि के स्तंभवाली कर्केतन मणि की भूमि देखने में आई। उसने कल्पवष्क्ष पुष्पों के आभूषण और जल से परिपूर्ण कलश तथा कंमडलों की श्रेणियां उन्होंने देखी। फिर अनेक कलाओं को जानने वाली सर्व देशों की भाषाओं में प्रवीण और गंडस्थल पर लटके हुए कुंडलों वाली अनेक छडी धारण करने वाली सुलोचनाएं भी देखने में आई। उन सबको देख वासुदेव चिंतन करने लगे कि इतनी छडीदार स्त्रियों से नीरंघ्र परिवृत ऐसे इस गृह में किसी को प्रवेश करने का अवसर नहीं है। वसुदेव इस प्रकार विचार कर रही थे कि इतने में सहजता से कनक कमल को हाथ में धारण करती हुई दिव्यवेश युक्त एक दासी पक्षधर के मार्ग से बाहर आई। (गा. 131 से 145) उसे देखकर समी छडीदार वामाएं संसभ्रम से पूछने लगी कि राजकुमारी कनकवती कहाँ है? और क्या कर रही है? तब दासी ने कहा अभी तो प्रभदवन त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 85
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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