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________________ लिया। तत्पश्चात चारूदत्त श्रेष्ठी अन्य सभी वादियों को विदा करके वसदेव को बहुत मान सम्मान के साथ स्वस्थान लाया। विवाह के समय सेठ ने कहा कि वत्स! किस गोत्र को उद्देश्य करके तुमको दान दूं, वह कहो। वसुदेव ने हंसकर कहा- जो तुमको योग्य लगे वही कह डालो। श्रेष्ठी ने कहा यह वणिक पुत्री है, यह जान तुमको हंसी आ रही है पंरतु किसी समय मैं तुमको इस पुत्री का वृतांत आरंभ से कहूंगा। ऐसा कह चारूदत्त सेठ ने वर कन्या का विवाह किया। सुग्रीव और यशोग्रीव ने भी अपनी श्यामा और विजया नामक कन्या जो वसुदेव के गुणों से रंजित हुई थी, वसुदेव को दी। (गा. 176 से 189) एक दिन चारूदत ने वसुदेव से कहा कि इस गंधर्व कन्या का कुल आदि वृतांत सुनो। इस नगरी में भानु नामक एक धनाढ्य सेठ था। उसके सुनयन नाम की पत्नि थी। दोनों निःसंतान होने के कारण दुखी थे। एक वक्त उन्होंने एक चारण मुनि से पुत्र के विषय में पूछा। उन्होंने कहा कि पुत्र होगा, तब अनुक्रम से में उनका पुत्र हुआ। एक दिन मैं मित्रों के साथ क्रीड़ा करने गया था, तब समुद्र के किनारे पर किसी आकाशगामी पुरूष के मनोहर पदचिह्न मुझे दिखाई दिए। उन चिह्नों के साथ स्त्री के भी पदचिह्न थे। जिससे ऐसा ज्ञात हुआ कि कोई पुरूष प्रिया के साथ यहाँ से गया है। आगे जाने पर एक कदलीग्रह में पुष्प की शय्या और ढाल तलवार मुझे दिखाई दिये। उसके समीप एक वृक्ष के साथ लोहे के कीलों के साथ ठोंका हुआ एक खेचर दिखाई दिया और उस तलवार की म्यान के साथ औषधि द्वारा उस खेचर को कीलों से मुक्त किया। दूसरी औषधि से उसके घाव पर लगाकर ठीक किया और तीसरी औषधि से उसे सचेत किया। पश्चात वह बोला, वैताढयगिरी पर शिव मंदिर नगर के राजा महेंद्र विक्रम का मैं अमित गति पुत्र हूं। एक बार धूमशिख और गौरमुंड नाम के दो मित्रों के साथ क्रीडा करता हुआ मैं हिमवान पवर्त पर गया। (गा. 190 से 198) वहाँ हिरण्यरोम नाम के मेरे एक तपस्वी मामा की सुकुमालिका नाम की रमणीय कुमारी मुझे दिखाई दी। उसे देखते ही कामार्त हो स्वस्थान पर गया। बाद में मेरे मित्र ने मेरी स्थिति जानकर तत्काल ही मेरे पिता ने मुझे बुलाकर उसके साथ मेरा विवाह करा दिया उसके साथ क्रीडा करता हुआ रहता था कि 50 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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