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________________ चारूदत्त नाम का एक श्रेष्ठी रहता है। उसके गंधर्व सेना नाम की कला के एक स्थान जैसी रूपवती कन्या है। उसने ऐसी प्रतिज्ञा की है कि जो गायनकला में मुझे जीत लेगा वही मेरा भर्तार होगा। इसलिए उसको वरने के लिए ये सर्व जन गायन कला सीखने में प्रवृत हुए हैं। प्रत्येक महिने में सुग्रीव और यशोग्रीव नाम के दो गंधर्वाचार्यों के समक्ष गायन प्रयोग होता है। यह सुनकर वसुदेव उन दोनों में उन्नत ऐसे सुग्रीव पंडित के पास ब्राह्मण के रूप में गये और जाकर कहा कि मैं गौतम गोत्री स्कदिल नाम का ब्राह्मण हूँ। चारूदत्त श्रेष्ठी की पुत्री गंधर्वसेना को वरने के लिए मैं तुम्हारे पास गंधर्व कला का अभ्यास करना चाहता हूँ। अतः मुझ जैसे विदेशी को आप शिष्य रूप से अंगीकार करो। धूल में ढंके रत्न को नहीं पहचानने वाले मूढ़ की तरह गायनाचार्य सुग्रीव उसे मूर्ख समझकर आदरपूर्वक अपने पास रहने को भी नहीं कहा। तो भी वासुदेव कुमार ग्राम्य वचन से लोगों को हंसाता अपने मूल स्वरूप को गुप्त रखता गायन विद्या के बहाने सुग्रीव के पास रहे। एक बार गायनकला के बाद सुग्रीव की स्त्री ने पुत्रवत स्नेह से वसुदेव को एक सुंदर वस्त्र का जोड़ा दिया। पहले श्यामा ने भी एक वेश दिया था उस वस्त्र के जोड़े को भी धारण करके वसुदेव लोगों को कौतुक उत्पन्न करता हुआ चला। (गा. 166 से 175) तब नगर के लोग चल, चल तू ही गायन विद्या जानता है, इससे हम मानते हैं कि आज तू गंधर्व सेना को जीत ही लेगा ऐसा कहते हुए उसका उपहास करने लगे। उस उपहास से प्रसन्न होते हुए वसुदेव गायकों की सभा में गये। वहाँ लोगों ने भी उपहास में उसे ऊँचे आसन पर बिठाया। उस समय मानो कोई देवांगना पृथ्वी पर आई हो, ऐसी गंधर्वसेना सभामंडप में आई। उसने क्षणभर में ही स्वदेशी विदेशी बहुत से गायकों को जीत लिया। जब वसुदेव का बात करने का समय आया, तब उसने अपना रूप प्रकट किया। जिससे कामरूपी देव के समान शोभने लगा। उसका रूप देखते ही गंधर्वसेना भी मोहित हो गई। यह कौन होगा ऐसा तर्क वितर्क करते हुए सब लोग भी विस्मित हो गए। पश्चात लोगों ने जो जो वीणा बजाने को दी, उन सबमें दोष बताकर छोड़ दी। पश्चात गंधर्व सेना ने स्वंय की वीणा बजाने को दी तब उसे सज्ज करके वसुदेव ने पूछा कि हे सुभ्र! क्या इस वीणा द्वारा मुझे गायन करना है? गंधर्व सेना बोली, हे गीतज्ञ। पद चक्रवर्ती के ज्येष्ठ बंधु विष्णु कुमार मुनि का त्रिविक्रम संबंधी गीत इस वीणा में बजाओ। पीछे मानो पुरूषवेषी सरस्वती की सम्मति पूर्वक गंधर्व सेना को जीत त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) ___49
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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