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________________ इधर कृष्ण रूक्मिणी को लेकर द्वारका के पास आए। प्रवेश करते समय कृष्ण ने रूक्मिणी को कहा, हे देवी! देखो यह मेरी रत्नमयी द्वारका नगरी देवताओं ने रची है। हे शुभे! इस नगरी के देववृक्षमय उद्यानों में देवी के सदृश तुम अविच्छिन्न सुख पूर्वक मेरे साथ क्रीड़ा करोगी। रूक्मिणी बोली, हे स्वामिन! आपकी अन्य पत्नियों को उनके पिताजी ने बड़े परिवार और विपुल समृद्धि के साथ आपको दिया है और मुझे तो आप अकेली को कैदी की तरह ले आये हो, तो मैं मेरी सपत्नियों के समक्ष हास्यपात्र न हो जाउँ, ऐसा करो उसके ऐसे वचन सुनकर मैं तुझे सर्वाधिक सम्मानित करवाऊँगा ऐसा कह कृष्ण ने रूक्मिणी को सत्यभामा के महल के समीपवर्ती महल में उतारा। वहाँ उससे गंधर्व विवाह कर कृष्ण उसके साथ स्वच्छंद रूप से क्रीड़ा करने लगे। (गा. 59 से 65) कृष्ण ने रूक्मिणी के घर में अन्य सभी का प्रवेश अवरूद्ध कर दिया। इससे एक बार सत्यभामा ने कृष्ण को आग्रहपूर्वक कहा कि आपकी प्रिया को तो बताओ। कृष्ण ने लीलोद्यान में श्रीदेवी के गृह में से स्वजनों से गुप्त रीति से उनकी प्रतिमा को उठवा ली और निपुरण चित्रकारों के पास श्रीदेवी की प्रतिमा चित्रित करवाई। पश्चात श्रीदेवी के स्थान पर रूक्मिणी को स्थापित करके उसे सिखाया कि यहाँ पर जब मेरी सब देवियां आवें तब तुम उस समय निश्चल रहना। तब कृष्ण स्वस्थान पर चले गये, तब सत्यभामा ने पूछा कि नाथ! आपने आपकी वल्लभा को किस स्थान पर रखा है? कृष्ण ने कहा, श्रीदेवी के गृह में रखा है। तब सत्यभामा अन्य सपत्नियों को साथ लेकर श्रीदेवी के मंदिर में आई। वहाँ रूक्मिणी को श्रीदेवी के स्थान पर देखा परंतु उसका भेद मालुम न होने से यह श्रीदेवी ही है, ऐसा जानकर सत्यभामा बोली- अहो! इस श्रीदेवी का कैसा रूप है ? अहो! इसको बनाने वाले कारीगरों का भी कैसा कौशल है? इस प्रकार कहकर उसे प्रणाम किया। तब कहा हे श्री देवी! आप प्रसन्न होकर ऐसा करो कि जिससे मैं हरि की नई पनि रूक्मिणी को मेरी रूपलक्ष्मी से जीत लूँ। यह कार्य सिद्ध होने पर मैं आपकी महापूजा करूँगी। ऐसा कहकर उसने कृष्ण के पास आकर पूछा कि आपकी पत्नि कहां है ? श्रीदेवी के गृह में तो नहीं है। (गा. 66 से 72) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 181
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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