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________________ तब कृष्ण सत्यभामा ओर अन्य पत्नियों के साथ श्रीदेवी के मंदिर में आये। उसी समय रूक्मिणी अंदर से बाहर आई और कृष्ण को पूछा मैं किसको नमस्कार करूँ? कृष्ण ने सत्यभामा को बताया तब सत्यभामा बोल पड़ी यह देवी मुझे किस प्रकार नमस्कार करेगी? क्योंकि मैं ही अभी अज्ञान से उसको नमन कर गई थी। तब हरि ने हास्य करते हुए कहा, तुम तुम्हारी बहन को ही नहीं पहचानती इसमें क्या दोष है? यह सुनकर सत्यभामा खिन्न हो गई और रूक्मिणी भी अपने मंदिर में आ गई। कृष्ण ने रूक्मिणी को विपुल समृद्धि दी और उसके साथ प्रेमामृत में मग्न होकर रमने लगे। (गा. 73 से 76) एक बार नारद घूमते घूमते वहाँ आ पहुँचे। कृष्ण ने उनकी पूजा की और पूछा कि हे नारद! आप कौतुक के लिए ही घूमते हैं तो कुछ आप ने आश्चर्य जनक किसी स्थान पर देखा क्या? तब नारद बोले अभी अभी एक आश्चर्य देखा है वह सुनो -वैताढय गिरि पर जांबवान नाम का एक खेचरेंद्र है, उसके शिवचंद्रा नाम की प्रिया है। उनके विश्वकसेन नाम का एक पुत्र और जांबवती नाम की कन्या है। तीन जगत में उसके समान स्वरूपवान कन्या नहीं है। वह बाला नित्य क्रीड़ा करने के लिए हंसी की तरह गंगा नदी में जाती है। उस आश्चर्यभूत कन्या को देखकर मैं तुमको कहने के लिए ही आया हूँ। यह सुनकर कृष्ण तुरंत बालवाहन सहित गंगा किनारे गये। वहाँ सखियों से परिवृत क्रीड़ा करती हुई जांबवती उनको दिखाई दी। जैसा नारद ने कहा था यह वैसी ही है। ऐसा बोलते हुए हरि ने उसका हरण कर लिया तब बहुत जोर से कोलाहल होने लगा। यह सुनकर उनके पिता क्रोधित होते हुए खडग लेकर वहाँ आये। उनको अनाधृष्णि ने जीत लिया और कृष्ण के पास ले आया। जांबवान ने अपनी पुत्री कृष्ण को दे दी और स्वंय का अपमान होने से वैराग्यवासित हो दीक्षा ले ली। जांबवान के पुत्र विश्वकसेन के साथ जांबवती को लेकर कृष्ण द्वारका में आये। वहाँ कृष्ण ने रूक्मिणी के महल के पास जांबवती को भी महल दिया उसके योग्य अन्य भी बहुत कुछ दिये। उसका रूक्मिणी के साथ सखी भाव मित्रता कराया। (गा. 77 से 86) एक वक्त सिंहलपति अलक्ष्णरोमा के पास जाकर वापिस लौटे दूत ने कृष्ण के पास आकर इस प्रकार विज्ञप्ति की कि हे स्वामिन्! अलक्ष्णरोमा राजा 182 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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