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________________ क्योंकि तुम क्षत्रियाणी हो। यह बिचारा रूक्मि मेरे सामने क्या है? हे शुभे। तू मेरा अद्भुत बल देखना। (गा. 40 से 44) इस प्रकार कहकर उसको प्रतीति कराने के लिए कृष्ण ने अर्धचंद्र बाण के द्वारा कमलनाल की पंक्ति की तरह तालवृक्ष की श्रेणी को एक साथ छेद डाला और अंगूठे और अंगुली के बीच में रखकर अपनी मुद्रिका का हीरा मसूर के दाने के समान चूर्ण कर दिया। पति के ऐसे बल से रूक्मिणी हर्षित हो गई और प्रभातकाल के सूर्य सी पद्मिनी की तरह उसका मुख प्रफुल्लित हो गया। तब कृष्ण ने राम से कहा यह सब लेकर आप चले जाओ मैं अकेला ही अपने पीछे आते रूक्मि आदि को मार डालूंगा। राम ने कहा तुम जाओ मैं अकेला ही सबको मार दूंगा। दोनों के ऐसे वचन सुनकर रूक्मिणी भयभीत होकर बोली, हे नाथ! मेरे सहोदर रूक्मि को तो बचा लेना। राम ने कृष्ण की सम्मति से रूक्मिणी का वह वचन स्वीकारा और स्वंय अकेले युद्ध करने के लिए वहाँ खडे रहे और कृष्ण द्वारका की ओर चले गये। (गा. 45 से 50) अनुक्रम से शत्रुओं का सैन्य नजदीक आया तब राम मूसल उठाकर समुद्र को मथने की तरह रण में उस सैन्य का मंथन करने लगे। वज्र द्वारा पर्वतों की तरह राम के हल से हाथी भूमि पर गिर पड़े तथा और मूसल के घड़े के ठीकरी की तरह रथ आदि चूर्ण हो गये। अंत में शिशुपाल सहित रूक्मि की सेना पलायन कर गई, परंतु वीर रूक्मि अकेला ही वहाँ खड़ा रहा। उसने राम को कहा अरे गोपाल! मैंने तुझे देखा है। मेरे सामने खड़ा रह मैं तेरे गोपय के पान से हुए मद को उतार दूंगा। उसके ऐसे अभिमानी वचन सुनने पर भी कृष्ण के सामने बचाने का वचन स्मरण कर लेने से, उन वचनों को याद करके राम ने मूसल को छोड दिया ओर बाणों से रथ को तोड़ दिया। कवच छेद दिया और घोड़ों को मार डाला। जब रूक्मि वध कोटि में आ गया तब राम ने क्षुरपु बाण से उसके मुख के ऊपर केश का ढुंचन करके हँसते हँसते बोले अरे मूर्ख! मेरी भ्रातृवधु का तू भाई होता है अतः तू मेरे लिए अवध्य है इसलिए चला जा। मेरे प्रसाद से तू मुंड हो जाने पर भी अपनी पत्नियों के साथ विलास कर। राम के ऐसे वचन से लज्जित होकर रूक्मि कुंडिनपुर नहीं जाकर वहाँ पर भोजकट नाम का नगर बसाकर रहने लगा। (गा. 51 से 58) 180 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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