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________________ एक सुवर्ण की अर्हत प्रतिमा उसको अर्पण की। पश्चात् वह शासन देवी बोली हे वत्से! ये भावी तीर्थकर श्री शांतिनाथ जी की प्रतिमा है तुमको इनकी अहर्निश पूजा करनी है। इस प्रकार कहकर देवी अंतर्ध्यान हो गई। दवदंती प्रफुल्लित नेत्र से प्रतिमा को वंदन करके अपने गृह में ले गई। (गा. 302 से 311) सुंदर दांत वाली दवदंती अपनी समान वय की सखियों के साथ क्रीड़ा करते हुई लावण्यज की जलगृह समान पवित्र यौवनावस्था को प्राप्त हुई। राजा और रानी उसे पूर्ण यौवनवती हुई देखकर उसका विवाहोत्सव देखने को उत्सुक हुए परंतु उसके अनेक सदगुणों के योग्य वर की चिंता से हृदय में शाल पीडित जैसे अति दुखित दिखाई देने लगे। अनुक्रम से दवदंती अठ्ठारह वर्ष की हुई, परंतु उसके पिता उसके योग्य कोई श्रेष्ठ वर को प्राप्त न कर सके। उन्होंने विचार किया कि अति प्रौढ हुई विचक्षण कन्या का स्वंयवर करना ही युक्त है, अतः उन्होंने राजाओं के आंमत्रण करने के लिए दूतों को आदेश दिया। उनके आमंत्रण से अनेक राजा और युवा राजपुत्र अति समृद्धि द्वारा परस्पर स्पर्धा करते हुए शीघ्र ही वहाँ आये। (गा. 312 से 317) आए हुए राजाओं के एकत्रित हुए गजेंद्रों से कुंडिनपुर की प्रात भूमि विध्याद्रि की तलहटी की भूमि जैसी दिखाई देने लगी। कोशलपति निषध राजा भी नल और कूबर दोनों राजकुमारों को लेकर वहाँ आये। कुंडिनपति महाराजा ने सर्व राजाओं का अभिगमन पूर्वक स्वागत किया। घर पधारें अतिथियों के लिए वैसा ही करना योग्य है। विपुल समृद्धि द्वारा मानो पालक विमान का अनुज हो वैसा स्वयंवर मंडप भीमरथ राजा ने रचाया। उस मंडप में विमान जैसे सुंदर मंच स्थापित किये और उन प्रत्येक मंच के ऊपर मनोहर स्वर्णमय सिंहासन रखवाये। तब समृद्धि द्वारा मानो एक दूसरे से स्पर्धा करते राजा गण स्वंयवर के दिन अलंकार और वस्त्रों को धारण करके मानो इंद्र के समानिक देवता हों, इस प्रकार स्वंयर मंडप में आए। सर्व नृपगण शरीर की शोभा का विस्तार करते हुए मंच पर विराजमान हुए और विविध प्रकार की चेष्टाओं से अपना चातुर्य स्पष्ट बताने लगे। कोई जवान राजा उत्तरीय वस्त्र का योगपट करके अपने करों के द्वारा चलित पत्रों से मनोहर ऐसे नीलकमल को घुमाने लगे, तो कोई कामदेव की 96 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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