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________________ कीर्तिराशि की निर्मल वर्णिका की भांति भ्रमर की तरह मल्लिका के सुगंधी पुष्पों को सूंघने लगे । कोई युवा राज कुमार जैसे आकाश में दूसरे मृगांकमंडल को रचने को इच्छुक हो वैसे स्वहस्तों से पुष्पों के गुच्छों की गेंद उछालने लगे। कोई युवा नरेश क्षण क्षण में अंगुलियों के द्वारा गहन कस्तूरी से पंकिल ऐसी अपनी दाढी मूंछ का स्पर्श करने लगे, कोई कोई युवा मुद्रिकाओं की मणियों से प्रकाशित ऐसे दृढ़ मुष्टि वाले हाथ से दांत की मूठ मुष्ठी में पकड कर छोटी तलवारों को नचाने लगे, उदार बुद्धि वाले कोई चतुर नृपकुमार केतकी के पत्र को तोड़ तोड़कर कमला के कमल जैसे सुंदर कमल गूंथने लगे और कोई आंवले के जैसे स्थूल मुक्ताफल के कंठ में पहने हुए द्वारों को हाथ द्वारा बारंबार स्पर्श करने लगे। (गा. 318 से 335) देवालय में देवी शोभित हो वैसे उस मंडप को शोभित करती राजकुमारी दवदंती पिता की आज्ञा से वहाँ आई । मुक्तामणि के अलंकारों से उसके सर्व अवयव अंलकृत थे फलतः वह प्रफुल्लित मल्लिका जैसी दृष्टिगत हो रही थी । बहती हुई नौका के जलतरंग जैसी उसके कुटिल केश की वेणी शोभित थी। सूर्य के युवराज सा सुंदर तिलक ललाट पर धारण किये हुए थी । उसके केश काजल जैसे श्याम थे । स्तन मंडल उतंग थे। उसने कदली के गर्भत्वचा जैसे मृदु वस्त्र पहने हुए थे। सर्व अंग स्वच्छ श्रीचंदन के विलेपन से युक्त थे । उसके लोचन विशाल थे। ऐसी दवदंती को देखते ही सर्व राजाओं के नेत्र एक ही साथ उस पर पडें। तब राजा भीमराज की आज्ञा से अंतःपुर की चतुर प्रतिहारी ने प्रत्येक राजा का नाम ले लेकर दवदंती को परिचय कराया । हे देवी! यह जितशत्रु राजा का पुत्र ऋतुपर्ण राजा शिशुकुमार नगर से पधारे हैं, इन पर दृष्टि करो। ये इक्ष्वाकु वंश में तिलक रूप गुणरत्न के भंडार चंद्रराजा के चंद्रराज हैं उनका क्यों नहीं वरण करना चाहती ? ये चंपानगरी के राजा धरणेंद्र के पुत्र भोगवंश में उत्पन्न हुए सुबाहु हैं उनका वरण करो कि जिससे तुम गंगानदी के जल क वाले पवन से बित्ति हो जाओगी । यह रोहितक नगर के स्वामी पवित्र चंद्रशेखर हैं, वे बत्तीस लाख गांव के अधिपति हैं, क्या ये तुमको रूचते हैं ? यह जयकेशरी राजा के पुत्र शशिलक्ष्मा है जो मूर्तिमंत कामदेव सा है, वे क्या तुम्हारे मन को आकर्षित नहीं करते? हे महेच्छा! यह रविकुल मंडन जहन का पुत्र याज्ञदेव है त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व ) 97
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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