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________________ जन्म दिया। महापुरूष के वक्षःस्थल में श्रीवत्सव की चिह्न के सदृश उस कन्या के मस्तक पर सूर्य के जैसा तेजस्वी तिलक जन्म के साथ ही सहज प्रकट हुआ था । वह कन्या स्वभाव से ही तेजस्वी थी, परंतु उस तिलक से सुवर्ण की मुद्रिका जिस प्रकार उस पर जड़े हुए रत्न से चमके जैसे वह विशेष चमकती थी । उस पुत्री के जन्म के प्रभाव से अतुल पराक्रमी भीमरथ राजा के उग्र शासन को अनेक राजा मस्तक पर धारण करने लगे। जब वह कन्या उदर में थी, तब रानी ने दावानल से भय पाकर आए हुए एक श्वेत दंती को देखा। इससे कुंडिन पति ने मास पूर्ण होने पर उस कन्या का दवदंती नाम रखा। जो नाम सर्वत्र हर्ष संपति के निधान तुल्य हो गया। जिनके मुख के सुंगधित निःश्वास पर भ्रमरों की श्रेणी भ्रमण कर रही है, ऐसी वह बाला दिनोंदिन बढ़ती हुई छोटे छोटे कदमों से चलने लगी। जिसका मुखकमल सुंदर है ऐसी वह बाला एक पुष्प से दूसरे पुष्प पर भ्रमरी जाती है वैसे अपनी संपन्न सौतेली माताओं के एक हाथ से दूसरे हाथ पर संचार करने लगी । अंगुष्ठ और मध्य अंगुली की चुटकी के नाद से ताल देती और मुख से बाजा बजाती धायमाताएं उसे पग पग पर घूम घूम कर रमाती खेलाती थी । झंकार करते नुपूरों द्वारा मंडित यह बाला अनुक्रम से डग भरती हुई चलती थी और मूर्तिमान लक्ष्मी जैसी यह राजपुत्री गृहांगण को शोभा देती हुई क्रीड़ा रमती रहती थी । इसी प्रकार उसके प्रभाव से राजा को सर्व निधियां प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त हुई । (गा. 291 से 301 ) जब उस कन्या को आठवां वर्ष शुरू हुआ, तब राजा ने कलाएं ग्रहण करने के लिए उसे एक उत्तम कलाचार्य को सौंपा। उत्तम बुद्धिमान बाला के लिए वे उपाय तो मात्र साक्षी रूप हुए। बाकी तो दर्पण में प्रतिबिंब की भांति उसमें सर्वकलाएं स्वतः प्राप्त हो गई। यह बुद्धिमती राजकन्या कर्मप्रकृत्यादिक में ऐसी पंडित हुई कि उसके समक्ष कोई स्याद्वाद का आक्षेप करने वाला भी नहीं हुआ । सरस्वती के सदृश कला रूप सागर पारंगत उस कन्या को उसके गुरू राजा के पास ले आए। गुरु की आज्ञा से सदगुण रूप उद्यान में एक दृष्टांत जैसे तुस की कन्या ने अपना सर्व कलाकौशल अपने पिताजी को उत्तम रीति से बताया। साथ ही उसने पिता जी के सन्मुख अपने श्रुतार्थ का प्रावीण्य ऐसा बताया कि जिससे वह राजा सम्यग्दर्शन का प्रथम उदाहरण रूप हुआ न राजा ने एक लाख एक सुवर्ण मोहरों से अपनी पुत्री के कालकाचार्य की पूजा करके उनको विदा किया। दवदंती के पुण्य के अतिशय से निवृत्ति नाम की शासनदेवी ने साक्षात आकर त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व ) 95
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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