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________________ क्षीरडिंडीरा नामक दांपत्य रूप से शोभित देवी देवता हुए। वहाँ से च्यवकर क्षीरडिंडीर देवता इस भरत क्षेत्र में कोशल नाम के देश में कोशला नगरी में ईक्ष्वांकु कुल में जन्मे निषध राजा की सुंदरी रानी की कुक्षि से नल नामका पुत्र हुआ। उस राजा के दूसरा कुबेर नाम का उसका छोटा पुत्र हुआ। (गा. 273 से 278) यहीं पर ही विदर्भ देश में कुंडिन नाम के नगर में भयंकर पराक्रम वाले भीमरथ नाम के राजा थे। अपनी अति श्रेष्ठ रूप संपति से स्वर्ग की स्त्रियों को भी लज्जित करने वाली पुष्पदंती नाम की एक निष्कपटी रानी थी। धर्म और अर्थ के विरोध बिना काम पुरूषार्थ को साधता वह राजा उसके साथ निर्विघ्न रूप से सुखभोग करता था। किसी समय शुभ समय में क्षीरडिंडीरा देवलोक में से च्यवकर पुष्पदंती रानी के उदर में पुत्री रूप से उत्पन्न हुई। उस समय मनोहर शय्या में सुख रूप से सोई रानी ने रात्रि को अवसान में शुभस्वप्न देखकर राजा को कहा कि हे स्वामिन! आज रात्रि को सुख रूप से सोते हुए स्वप्न में वनाग्नि से प्रेरित एक श्वेत हस्ति को आपके यश समूह जैसा उज्जवल अपने घर में आते हुए मैंने देखा। (गा. 279 से 284) इस प्रकार सुनकर सर्व शास्त्र रूप सागर के पारगामी ऐसे राजा ने उनको कहा कि हे देवी। इस स्वप्न से ऐसा ज्ञात होता है कि कोई पुण्यात्मा आज तुम्हारे गर्भ में आकर स्थित हुआ है। इस प्रकार राजा रानी बात करते थे कि इतने में मानो देवलोक से च्यवकर ऐरावत हाथी आया हो, ऐसी कोई श्वेतहरित वहाँ आया। राजा के पुण्य से प्रेरित हो उस हाथी ने तत्काल राजा को रानी साहित अपने कंधे पर चढा लिया। और नगरजनों ने पुष्पमालादिक से पूजित वह हाथी पूरे नगर में घूमकर वापिस महल के पास आया। वहाँ उन राजदंपती को उतारा। तब वह गजेंद्र अपने आप बंधनस्थान मे आकर खड़ा रहा। उस समय देवताओं ने रत्न और पुष्पों की वृष्टि की। राजा ने सुगंधी यक्षकर्दम से उस हाथी के पूरे शरीर पर विलेपन करके, उत्तम पुरूषों से अर्चन करके उसकी आरती उतारी। (गा. 285 से 290) गर्भकाल पूर्ण होने पर व्यतिपात प्रमुख योग से अदूषित ऐसे दिन में मेघमाला जैसे विद्युत को जन्म देती है, उसी प्रकार रानी ने एक कन्या रत्न को 94 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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