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________________ गाथा १३ विषय प्रायश्चित्तद्वारमां परिहारविशुद्धिकने कयां प्रायश्चित्त होय ? तेनु ं स्वरूप कारणद्वारमा परिहारविशुद्धिकने कारण एटले आलम्बन होय के न होय ? तेनु स्वरूप निष्प्रतिकर्मताद्वारमां परिहारविशुद्धिक निष्प्रतिकर्म होय के अनिष्प्रतिकर्म होय ? तेनु ं स्वरूप भिक्षाद्वारमां परिहारविशुद्धिकना भिक्षा अने विहार कया कालमां होय ? तेनुं स्वरूप परिहारविशुद्धिकना इत्वर अने यावत्कथिक वे भेदो आदिनु स्वरूप १२ संयममार्गणाना उत्तरभेदोमांथी सूक्ष्मसम्पराय, यथाख्यात, 'देशविरत अने अविरतसम्यग्दृष्टिनी व्याख्या १२ दर्शनमार्गणाना चक्षदर्शन आदि चार उत्तर भेदोनी व्याख्या १३ लेश्या, भव्य, सम्यक्त्व अने संज्ञिरूप मार्गणाना उत्तर भेदो १३ लेश्यामार्गणामां छ लेश्यानां नाम १३ भव्यमार्गणामां भव्य अमव्यनी व्याख्या १३ सम्यक्त्वमार्गणाना उत्तरभेदो पैकी वेदकसम्यक्त्वनी व्याख्या १३ सम्यक्त्वमार्गणाना उत्तरभेदो पैकी क्षायिक सम्यक्त्वनुं स्वरूप १३ सम्यक्त्वमार्गणाना उत्तरभेदो पैकी औपशमिकसम्यक्त्व, तेना १४ आहारक अनाहारकी व्याख्या अने चौदमूलमार्गणाना बासठ उत्तरभेदोनां नाम १४-१८ मार्गणस्थानना उत्तरभेदो पैकी कया कया भेदमां कयां कयां जीवस्थान होय ? तेनुं स्वरूप संज्ञिने औपशमिक सम्यक्त्व न होवाना अने होवाना मतनुं निरूपण सम्मूच्छिममनुष्यनी उत्पत्तिनां स्थानो पत्र १५६ १५९ बादर अपर्याप्तने तेजोलेश्या केम सम्भवे ? ए शङ्कानु निवारण १३-२३ चौदमार्गणास्थानना उत्तरभेदोमां कयां कयां गुणस्थान होय ? तेनुं स्वरूप २४ योगोनी सङ्ख्या अने मार्गणास्थानमां योग २४ सत्यमनोयोग आदि पंदर योगोनु सप्रमाण स्वरूपनिरूपण २४ कार्मणशरीर गत्यंतरमां साथ जाय छे तो केम देखातुं नथी ? ए शङ्कानु समाधान तेजसने शरीर मान्छे तो तेने योगमां केम गण्यु' नथी ? एनु समाधान २४-२९ चौद मार्गगास्थानना उत्तरभेदोमां कया कया योगो होय ? तेनु स्वरूप २६ वैकिलब्धिवाला भने मिश्रगुणस्थानवाला मनुष्य-तिर्यखोने चैक्रियना आरंभनो सम्भव होवा छतां क्रियमिश्र केम न होय ? ए शङ्कानु समाधान २६ के सिद्धानुं सविस्तर स्वरूपनिरूपण २६ बधाए केवलियो समुद्घात करे के न करे ? ए शङ्कानु समाधान १५६ १६० १६० बे भेदो अने ग्रन्थिभेदनु स्वरूप १६२-१६५ १३ सम्यक्त्वमार्गणाना उत्तरभेदो पैकी मिध्यात्व, मिश्र,त्रण पुञ्ज भने सासादननु स्वरूप १६५-१६६ १३ संज्ञिमार्गणामां संज्ञि असंज्ञिनी व्याख्या १६६ १४ आहारकमार्गणाना भेद अने मार्गणास्थानमां जीवस्थान १६६ १६६-१६७ १६०-१६१ १६१ १६१ १६१ १६१ १६१ १६१-१६२ १६७-१७२ १६७ - १६८ १६८-१६६ १६९ १७२ - १७६ १७६ १७६.१८० १८० १८० १८०-१८६ १८५-१८६ १८६-१९० १८७
SR No.032086
Book TitleNavya Panch Karmgrantha Tatha Saptatika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri, Purvacharya, Malaygirisuri
PublisherBharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages602
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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