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________________ विषय १६२ गाथा ३० उपयोगनां नाम अने मार्गणास्थानना उत्तरभेदोमां उपयोग ३० बार उपयोगमां साकार भने अनाकार विभाग १९२-१६३ ३०-३४ चौद मार्गणास्थानना उत्तरभेदोर्मा का कया उपयोगो होय ? तेनु स्वरूप १९३.१६५ ३५ योगनी अन्दर जीवस्थान, गुणस्थान, योग अने उपयोगने आश्री मतान्तरनु निरूपण १९५-१६६ ३६-३७ चौदमार्गणास्थानना उत्तरभेदोमां कई कई लेश्याओ होय ? तेनु स्वरूप १९६-१६७ . ३७ मार्गणास्थानमा स्वस्थाननी अपेक्षाए गतिनु गतिसाथे परस्पर अल्पबहुत्व अने मनुष्यादिनी सङ्खयाप्रमाण विगेरे सविशेष स्वरूपनिरूपण १९७-२०२ ३८ मार्गणास्थानमा इन्द्रियनु इन्द्रियसाथे अने कायन काय साथे परस्पर अल्पबहुत्व २०२-२०४ ३६ मार्गणास्थानमा योगर्नु योग साथे अने वेदनु वेद साथे परस्पर अल्पबहुत्व २०४-२०५ ४०-४२ मार्गणास्थानमां कषायनी साथे कषायनुज्ञाननी साथे ज्ञाननु, संयमनी साथे संयमन अने दर्शननी साथे दशेनन परस्पर अल्पबहत्व २०५-२०७ ४३-४४ मार्गणास्थानमा लेश्यानी साथे लेश्यानु, भव्यामव्यनु, सम्यक्त्वनी साथे सम्यक्त्वनु, संज्ञि-असंज्ञिनु अने आहारक-अनाहारकनु परस्पर अल्पबहुत्व २०७-२०१ ४४ सिद्ध करतां संसारी जीवो अनन्तगुणा के अने ते बधाए प्रायः आहारी छे तो अनाहारीथी आहारी असङ्खचातगुणा केम सम्भवे ? ए शङ्का समाधान २१० ___ तृतीय गुणस्थानाधिकार. ४५ गुणस्थानमा चौद जीवस्थाननु स्वरूप २१० ४६-४७ गुणस्थानमां पंदर योगोनु स्वरूप २१०-२१२ ४८-४६ गुणस्थानमां बार उपयोगनु स्वरूप भने कार्मप्रन्थिक करतां सिद्धान्तनुजुमन्तव्य २१२-२१४ ५० गुणस्थानमा छ लेश्यान स्वरूप । २१४ ५० मिथ्यात्वादि मूलबन्धहेतुनुकथन २१४-२१५ ५० अहीं प्रमादने बन्धहेतु तरीके केम न जणाव्यो ? तेनु समाधान २१५ ५१ मिथ्यात्व अने अविरतिरूप मूलबन्धहेतुना उत्तरभेदोनु स्वरूप ५२ कषाय अने योगरूप मूलबन्धहेतुना उत्तरभेदोनु स्वरूप ५२ गुणस्थानमां चार मूलबन्धहेतुनु स्वरूप २१५ ५३ प्रसङ्गोपात मूलबन्धहेतुनो कर्मनी उत्तरप्रकृति आश्री विचार २१६-२१७ ५४ गुणस्थानमा सामान्यथी बन्धहेतुना उत्तर भेदोनी सङ्ख्या २१७-२१८ ५५-५८ गुणस्थानमा बन्धहेतुना उत्तरभेदोनु सविशेष स्वरूप. २१८-२२० ५६ गुणस्थानमां कर्मनी मूलप्रकृतिना बन्धनु स्वरूप २२० ६० गुणस्थानमा कर्मनी मूलप्रकृतिनी सत्ता भने उदयनु स्वरूप २२०-२२१ ६१-६२ गुणस्थानमां कर्मनी मूलप्रकृतिनी उदीरणानु स्वरूप २२१ ६२-६३ गुणस्थानमा वर्तमान जीवोना अल्त बहुत्वनु स्वरूप २२१-२२२ चतुर्थ भावाधिकार. ६४ छ भावनां नाम, तेनी व्याख्या अने उत्तरभेदोनी सङ्ख्या २२२-२२३ ६४ औपशमिक मावना बे भेदोनु स्वरूप २२३ २१५ २१५
SR No.032086
Book TitleNavya Panch Karmgrantha Tatha Saptatika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri, Purvacharya, Malaygirisuri
PublisherBharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages602
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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