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________________ लमीमोहन स्तवन संग्रह. ७७७.. द्रकी सोना, जिसमें अधकी निजगुणसोना. जिससे अधकी जिनपद सोना॥धारो गुण सम, जेथी दूर हुवे भ्रम, सहु दूर हुवै क्रम, जैनमंगल पावे धम, अजी सुनो सीखो धारो आगम श्रीवर मोहननाले ॥ ऐसे॥३॥ इति श्रीजिनपूजा विधि स्तवनं ॥॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥॥ गजल ॥ क्या कहुं अबबेरवेर०॥ॐ॥ ॥ ॥ या कहुं अब चेतजीव गेमरे संसार सारा॥या० ॥ टेक ॥ बहुत करमसे ना मिले, अपनागुण एकीवखत, तबतो श्रधा धारके, गुण पाय दर्शन ग्यान सारा ॥ या० १॥ पंचकारण सब आमिले, दिलधरो संयमतरफ, संयमलीये जावसें. जब जोमदे सहु कर्म प्यारा ॥ या० २॥ तीनरन जो तो मिले । दूर हुवे कुमती जरम, जिनमंगल गुणगाय के. शिवपाय मोहन ध्यान सारा॥या०॥३॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ हंसारे राजा० एचाल || ॥ ॥ ॥ सुनोरे चेतन, अजगजाल असारा । तुतो नमियो अनंतनव प्यारारे॥ सुनो० ॥ टेक॥ क्रोध लोन मोह मिथ्या कपटे । कीनोजालपसारारे ॥ सुनो० १ ॥ नवा नवारू पे. चिहुगतिमाहे । कुटुंब अनेक प्रकारारे॥ सुनो ॥२॥ठी काया उठी माया । ग सबपरवारारे ॥ सुनो॥ ०३॥ धन जोवन मद मतकर प्यारे । एकदिन जंगल चारारे॥ सुनो०४॥ जिनध्रम सार दया दान निजगुण । सेवत गुण सुख कारारे॥सुनो०५॥ जैनमंगलगुण श्रीवर पावत ! मोहन ग्यान प्रकारारे॥ सु० ६॥॥ ॥ ॥ ॥॥रागचंपेलो॥ तालपंजाबी ॥ ॥ ॥ ॥आदिजिनवरजी सुनोमेरी अरजी । नवजलसें अब तार तार तार ॥ आ० ॥टेक ॥ मोह मिथ्यावस काल बहु । जमियो नव वन चार चार चार ॥ आदि० १॥ हिवपुन्य दरशन गुणयोग, तुमगुण सुणिया सार सार सार ॥आ०२॥ जिनगुण ग्राहक नविलहस्ये शिव मोहनपद । धार धार धार ॥ ० ३ ॥ ॥ इतिश्री आदिजिनस्तवनं ॥४॥ ॥ ॥ लावणीकी चाल || * ॥ श्रवण अजितजिन सहुगुण सुन कर सेवनका दिल चाहते हैं
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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