SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 790
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . ७७८ रत्नसागर, श्रीजिन पूजा संग्रह. सेवनकरना सुमतिप्रादरना चेतनगुण जबपाते हैं ॥ टेक ॥ मोहे अबतो गेमावो सहुकुमतिकाखेल । चिहुंगतिमाहे बहुत किया गेल । पुन्ययोगे दरशन पाया। निजगुणमुमतिमहल ॥ मोहे० श्रव० १ ॥ मोहे अबतो देखावो सहुनिजगुणसेल । जेथीसहुजाणुं जगतकाखेल । करजोमीने सेवा करुं तुंही चित्रावेल ॥मो० अ० २॥ प्रनुअबतो तारो जवजलसेपार। गावे जिनमंगल गुणसुखकार । सहुसंघ श्रीबर पावे मोहन मुक्तीसार ॥ प्र० अ० ॥३॥ इतिश्री अजित जिनस्तवनम् ॥2॥ ॥ ॥ वामबंद, ताल २मात्रा६॥ॐ॥ ॥अजितचरण, रहतशरण, कनकवरण, तेजतरण ॥ अजि० १॥ दिलविचार, तत्वसार, मदप्रकार, तजगमार ॥ अ० २ ॥जव अनंत, जय सहंत, गुणधरंत, सुख करंत ॥अ० ३॥ ज्ञानराय, लक्ष्मीपाय, मुक्ति नाय, सुक्खथाय ॥ अ० ४॥ इतिपदं ॥१॥ ॥ ॥ शिरपरयेबोका० ॥ नाटक चाल || ॥ ॥ संनवजिन थांरी मूरतप्यारी अंगियां सारीरे ॥ सं०॥ अंगियां तुममननाई, मुंदर सब रत्नजमाई, मानुदिनकारीरे, जानें बलिहारीरे, ॥ सेवत नित तुम सुरसारा, तुम सहुजग मोहनगारा, नविपल पल तुमगुण धारे। शिवमुखलागत सहुप्यारे । श्रीबर हितकारी, मोहनधारी, गुणसुख कारीरे॥ सं० ॥१॥ इतिश्री संजय जिनस्तवनम् ॥॥ ॥ ॥ ॥ ॥आई सुंदर नार, करकर श्रृंगार०॥॥ ॥ ॥ ताल पंजाबी॥॥ ॥ ॥ जिनतत्वसार, सहुजग आधार, करिमोह जार, सुखशांतिसार, प्रगुण अपार दिलसमरणकीनो॥ जि० १॥ जिनसुमति पाय दिलसुमति थाय । सहु कुमति जाय मोह मद न साय ॥ गुण आत्म पाय बंबितसुख लीनो॥ जिन० २॥ नवजल प्रधान, प्रवहणसमान, सहुसुखनिधान, करि आत्मध्यान, शिवश्री प्रधान, गुणमोहनलीनो॥ जि० ३॥ इति श्री मुमति जनस्तवनम् ॥ * ॥ 1000
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy