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________________ ७७६ रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. दर्शन पायो। फिरतुं आलस क्युंखायरे॥जी० ३ ॥ परनपगारी अंतरजामी। तरण तारण महा रायरे ॥ जी० ४॥इकचित प्रनुको समरण करले । ज्यु गुण परगट थायरे ॥जी० ५॥ जोताहरा गुण प्रगट करै तो । शिवरमणीवरे जायरे ॥जी० ६॥ तत्वदीपक प्रनु श्रीवर ध्यावे। मोहन वंचित पायरे ॥ जीया० ७॥ इति जिनपदस्तवनम् ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ तालपंजाबी॥ राहचंपेली॥ ॥ॐ ॥ सुनोमेरे पतियां दिलधर वतियां । निजगुण दरशन नावं जानें जान॥ टेक।। जिन दरशनसें मोद मिलै । इकचित प्रनुगुण गानं गानं गा॥ सुनो० ॥ १ ॥ जंगम थावर तीर्थतणा। में तो नित सबगुण ध्यानं ध्यानं ध्यानं ॥ सुनो०॥ जैन प्रनावक गुण प्रगटे । शिव मोहनपद पात्रं पा पानं ॥ सुनो० ॥३॥ ॥ इति जिनदर्शनस्तवनम् ॥ * ॥ ॥ ॥ कुकछुक पमेरे इस में ॥ * ॥ ॥ ॥ नितनित नमुंरे तुमजिनप्यारे । मोहि तार, अबतार, तार, तार, तार. अबताररे । नितनमुरे० ॥ नितनित । टेक ॥ तुमनाम जगमोहता। तुमकाम जगसोहता । तुमधर्म जगबोहता । जविजीव नवखोहता ॥१॥ मननावत, गुणगावत, शिवपावत, तुमकरो प्रकाशक जैन मोहन गुणसारे नित० ॥२॥ इति पदम् ॥ ॥ ॥ * ॥ ॥ॐ॥ ॥ ॥ ऐसे धोका देनेवाले ताल पंजाबी ॥ ॥ ॥ ॥ ऐसे पूजा करनेवाले मेने विरले देखे जाले ॥ ऐसे टेक ॥ असे जिन आग्याकों पालनवाले, विधिसंयुतसें रहनेवाले, विनयादिगुण धरने वाले, जक्तिगुण दिखलानेवाले ॥ पूजा० ॥१॥ असे अपनेजीके सुखपा नेको, गुणगानेंको गुणपानेको, इकचित जिनको ध्यातेहै सो, शिवकामें को शिवपानेको, गेमी गेमी नवनीबाते, त्यागीहे कुमतीकीवाते. धारीहे सुमतीकीवाते, पालीहे समकितकी वाते ॥ पूजा० २॥ असे पूजन द्रव्ये जावे, फल शिवनगरी देताहे, असे निजगुण प्रगटे सुंदर सहुदिल जाणे जगजाणे, सोना सोना जारी सोना, जैसीहे सूरजकी सोना, जैसी हे चं
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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