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________________ ३९४ रत्नसागर. दिलमें खुसी होके । पागलके माफक । नपानत खाते फिरते है । मन आवै ज्युं बोलतेहें । कोई बेश्यादिक का नाटक करायकै हमारु बगशीस कर देते हैं । मनमें जानें, हमनें बड़ा नाम किया। पर अहो जाइयो। इसमें तुमारा कुछ नाम नहीं है। निकेवल महा अशुन्न कर्म पैदा होता है। तुमारा कल्याण जबई होगा। ऐसी नमंगसें सर्व की लड़ा गेमके । जगवानका नन्नव करो । रात्री जागर्ण करो। नाटक करो । धर्मका नद्यो त करो। ( इसी तरै) होली खेलो (सो) तुमारा इह नव बी सुधरेंगे। परनवबी सुधरेंगे । (यह) द्रव्यै, नावै, दोर्नु होलीकाः यथावस्थित स्वरूप लिखा है । इसको आत्मार्थी धर्मज्ञ पुरष तो देख करकै प्रसन्न होंगे। यह खोटे मारग को बंध करने की प्ररूपणा रक्खेंगे। (और जो ) महामूर्ख अज्ञानी जीव होंगे (सो) अपनें खेलनेके वास्ते । सच्ची बातकोंनी कुयु क्ती लगायके कुछ ठहरावेंगे । महारोस धारण करेंगे । (जैसें ) कोइके पिताको गाली देनेंसें रोस नत्पन्न होय ( इसी तरै) यह नंम चेष्टा की निंदना देखकै महारोस धारण करेंगे। (और जो) मध्यस्थ जीव होंगे (सो) ऐसा बोलेंगे। यह बात सच है। किसका पर्वहै । किसका खेलना है। निकेवल इसमें अनर्थ दम लगता है । (परंतु) हम इकेला क्या करें। सर्व नाई बंधकों खेलते देखकै । हमसें रहा जाता नही । इसमें खेलते हैं। ( पर ) यह पृथा बंध होयतो अडीहै । ( इसीसें ) अहो देवानुप्रियो सर्व ठिकाणे यह नीच खेलकों गेमके । नत्तम खेल खेलनेकी प्रवर्तना क रो। जिसमें तुमारा तप तेज सदा बढता रहै । सदा आनन्द रहै । यह बारै माश के सर्ब कर्त्तव्य । मेंने अपनी बुद्धिसें न लिखा है । (किंतु ) प्रा चीन आचार्योंके व्याख्यानकी पचति देखके । सर्ब बालजनके नपगारार्थे संदिप्तसें शुध जाषामें प्रगट किये हैं (इसमें ) आगम बिरुध नो अधको क हनेंमें आयो होय (तो) त्रिकरण सुधै मिहामि मुक्कम देताहूं। (और) नीं च कर्मके बंध गोमानेकों । कठोर बचननी बोला है (सो) बाचकै । गु णको ग्रहण करना। परंतु रोस धारण न करना । मेरै तो शुध नवकार मंत्र गुणने वाले है ( सो) सर्व परम मित्र है । सर्वके तप तेज बढते देख
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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