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________________ ___ फाल्गुनमाशे, द्रव्य, जाव, होली अधिकार ३९३ बिबेकरों, श्री जिनधर्मसें, विकल हुए थके । नीच जातके परंपराकों प्राप्त हुए थके । लक्कम गणादिक. जलायके अग्निमई द्रव्य होलिका करै है। महा नत्तम चौमाशै पर्वका बिराधन कर है । ( दूशरे दिन ) मलमुत्रा दिकसें क्रीमा करै है । खोटा बचन बोलै है । रासन माथे चढ़े है। अनेक जीवांकों पुःख नत्पादन कर है। (ऐसे जीव) शुधबीतराग देवकी आग्यागे मके। जांम नरमा के कुल परंपराको प्राप्त होते है । मिष्टान्न भोजनका खा णा गोमके। बिष्टाको नोजन करते हैं । दूधका पीणा गेमके। जानते थके पिसाब पीते हैं। (ऐसे पुरुष ) निकेवल कांके वंध सघन करके। नीच ग तिकों नपार्जन करते हैं । अनर्थदंमसें अनन्त नव संसारकी स्थिति बां धते हैं। ( इस वास्ते ) आत्मार्थी नव्यजीवांकों । इस माफक । द्रव्य हो ली करनी नचित नहिं । (निकेवल ) नाव होली करनी उचित है ॥ वसं तके स्तवन बोलै । रात्री जागर्ण करावै । नगवानके मंदरमें पूजा करावै। महोचव निकाले । नाना प्रकारके नाटक करै । साहमी बहल करै । सा धर्मी लाई आपसमें नाना प्रकारकी क्रीमा करै । (आगै ) राजा लोक जी, बसंत ऋतु आनेंसें सऊन संबंधी साथ । नाना प्रकारके । जल । चं दन । केशर । अबीर । गुलाल । इत्यादिकसें क्रीडाकरी (सोतो) फेरनी शास्त्रों में देखते हैं । (परंतु ) यह मल मुत्रादिकसें खेलना । होली जलानी। पादत्राण खाणा । जम चेष्टा करनी । अपने धर्मकी मर्यादा । अपनें कु लकी मर्यादा । सर्व गेमके । नांड नरमाके गोदी वैठना । नाम नरमा के कुलकी मर्यादा करनी। ऐसी क्रीमा उत्तम पुरुषोंकै (और )जिनधर्म वा ले नव्य जीवोंके । कोई ठिकाणे करनी कही नहीं। यह क्रीमा निकेव ल महामिथ्यात्वी नीच पुरषोंने चलाई ही। नसी पुरुषोंके देखादेख पायें अज्ञानी जीव, सबकोई करनेकों लग गए। (देखो बडा आश्चर्य है)। जब मंदरजीमें पूजादिक महोदवका काम होता है। उस बखत बहुत को फुरसत न होती है । ( और जो केइ आते है )। ननोंकों स्नात्रिया होनेंमें । अगामी नाटक करने में । बमी लजा मालम होती है । (और होलीके दिन) माता, पिता, नाई बैन, सर्बकी लका बोझके । बहुत
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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