________________
द्रव्य भाव होली पर्वाधिकार, स्तवन ३९५ कै, मेरा चित्तमें परम आनंद होता है । (और ) त्रिकरण शुबै सर्ब जीवा जोनिसें वेर बेर खमाता हुं ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥॥
॥ * ॥ खमिय खमाविय में खमिय । सबह जीव निकाय । सिघह साख आलोयण । मशह बैर ननाय ॥ १॥ सवे जीवा कम्मवमु । चवदह राज नमंत । ते सब खमाविश्रा। मशवितेह खमंतु॥इति फाल्गुन मा०॥॥
॥ ॥ अथ नाव होली खेलनके स्तवन लि०॥8
॥ * ( रागधमाल ) होरी खेलियै नरबहुरन ऐसोदाव । ( हो) दयामिठाई अति जलीरे। तप मेवा परधांन । सील अथाणो अति नलौ (वारी) संयम नागर पांन। (हो०) ॥१॥ लेस्या मादल नाव मफरे क्रोध मान दोय ताल । पांच सुमतिको अरगजो (वारी) नवतत्व लेहु गुलाल । (हो)॥२॥ मुमता केसर घोलीयरे । दमवाको विरकाव । ग्यांन पिचरको पकरकै (वारी)। मुगति वधू चितलाय। (हो०) ॥३॥ ऐसा साज वनायकैरे। षनदेव गुण गाय । श्री जिनचंद इम खेलतां (वारी) नव नव पातिक जाय। (हो०)॥ ४ ॥ इति पदम् ॥॥
॥ ॥राग वसंत होरी तालयत् ॥ॐ॥ - ॥ * ॥ जय बोलोरे पाश जिनेशरकी ॥ (ज.)॥ मस्तक मुगुटसोहै मनमोहन । अंगीया सोहै केशरकी। (जै०)॥१॥ त्रिनुवन ज्योति अखं मित तनकी । स्याम घटा जैसी जलधरकी ॥ ( ज०)॥२॥ बालपणेम अदनुत ग्यानसुं । करुणा कीधी विषधरकी ॥ (ज०)॥३॥ कमठ नमा य वायज्युं वादल। जीतकरी अपने घरकी॥ (ज०)॥४॥मात वामा नयरे जिनजायो । राणी अश्वसेन नरेसरकी ॥ (ज.)॥५॥ अष्ट कर म दल सबल खपाए। श्रेणि चढया जे शिवपुरकी ॥ (ज०)॥६॥ कहै जिन चंद मेरे प्रनुपारस । जैसी गया सुरतरु की॥ (ज०)॥७॥ ॥ .. ॥ ॥ पुनः वसन्त होरी॥॥
॥ ॥ मधुवनमें जाय मची होरी ॥ (म०)॥ ग्यान गुलाल अबीर न मावो। सुमता केशर रंगघोली ॥ (म०)॥ १॥ अमृत रूप धरम जिन वरको । सुचकमा कहै करजोडी ॥ (म०)॥२॥ इति पदं ॥३॥